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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
68.श्रीकृष्ण के सोलह हजार विवाह
अब देखो, भगवान के जो इतने सारे विवाह हुए वे बड़े विचित्र थे। इस प्रसंग को, मात्र ईश्वर दृष्टि से ही नहीं, सामाजिक दृष्टि से भी जरा विचार करके देखना चाहिए। सच बात तो यह है कि जब किसी की कन्या अपहृत हो जाती है और वह दूसरे के घर में, या राक्षस आदि के घर में रह कर आती है, तो कई बार स्वयं उसके माता-पिता भी सहजता से उसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते। उनका मन अनेक प्रकार की आशंकाओं से भर जाता है। उन्हें लगता है अब इसके कारण समाज में हमारी अवहेलना हो सकती है। हम उसका सामना कैसे करेंगे? कई बार माता-पिता भी अपनी उस कन्या को छोड़ देने के लिए तैयार हो जाते हैं। यहाँ भगवान सोचते हैं, ये 16000 हैं, अब यदि इनको किसी ने स्वीकार नहीं किया तो फिर कैसी स्थिति हो जायेगी? वह तो बड़ी भयानक स्थिति होगी, क्योंकि जब इतनी सारी स्त्रियाँ बिना किसी घर-बार के रह जायेंगी तब समाज की स्थिति तो बिगड़ेगी ही, स्वयं इनकी स्थिति भी खराब हो जायेगी। ऐसा सोच-विचार कर के भगवान ने उन्हें स्वीकार कर लिया। देखो, उन सब पर भगवान ने यह कितना बड़ा उपकार किया! इस घटना को देखने की एक दृष्टि तो यह हो सकती है कि भगवान ने इनकी इच्छापूर्ति की। परन्तु यह तो एक बड़ी ही सामान्य बात हुयी। विशेष बात तो यह है कि ऐसा कर के भगवान ने समाज में कितना बड़ा परिवर्तन ला दिया, कितनी बड़ी क्रान्ति और साथ ही शान्ति भी स्थापित कर दी। इस तरह भगवान ने उन सभी कन्याओं पर उपकार करके उनका कल्याण कर दिया। अब देखो यह एक विचारणीय बात है कि क्या किसी एक पुरुष के लिए 16000 स्त्रियों से एक साथ विवाह करना सम्भव है? क्या पहले कभी किसी ने ऐसा किया है? सोलह हजार स्त्रियों के साथ रहना क्या सम्भव है? यदि प्रत्येक के साथ एक-एक मिनट के लिए ही रहना हो, तो भी कितना समय लग जाएगा जरा बताओ? अतः इतनी बात तो स्पष्ट ही है कि ऐसा नहीं हो सकता। ऐसा था भी नहीं। उन राज कन्याओं के लिए भगवान ने न केवल सोलह सहस्र महल बनवाए वरन् उन्होंने स्वयं अपने भी उतने ही रूप बना लिए जितनी उनकी रानियाँ थीं। प्रत्येक महल में भगवान हर एक के साथ अलग-अलग होते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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