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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
4.नारद जी की सनत्कुमारों से भेंट
नारद जी भी सोच में पड़ गये कि अब मैं क्या करूँ? चिन्तित होकर वे बद्रीवन चले गये। बोले- अब मैं तपस करूँगा। इतने में वहाँ सनत्, सनक, सनातन व सनंदन-चारों कुमार आ गए। उनको देखकर नारदजी बड़े प्रसन्न हो गये। नमस्कार करके कहते हैं, ‘‘महाराज, आपकी बड़ी कृपा है कि मैंने आपका दर्शन पाया।’’ फिर सारी कथा सुनकर कहते हैं कि अब आप ज्ञान-वैराग्य को जगाने का उपाय बताइये। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मै क्या करूँ? सनत्कुमारों ने कहा- नारदजी तुम धन्य हो, श्रेष्ठ हो। इतनी निराशा होने पर भी तुमने इस उद्यम को छोड़ा नहीं। तुम वास्तव में भगवान के बहुत बड़े भक्त हो। अब तुम चिन्ता मत करो। हमने पहले से उपाय सोचकर रखा है।
भागवत सप्ताह करो। उससे ज्ञान-वैराग्य जाग जाएँगे। बोले इसकी दवाई पहले से ज्ञात है। कभी-कभी कोई रोग हो जाता है और उसकी दवाई मालूम नहीं होती। हम डॅक्टर के पास जाते हैं, वह हमें कहीं और भेज देता है। परन्तु रोग कहीं ठीक नहीं होता। कोई जानकार आकर कहता है- तुम्हारे घर में तुलसी का पौधा है कि नहीं? बस, उसका काढ़ा पी लो। कभी-कभी उपाय इतना सरल होते हुए भी हमें ज्ञात नहीं होता और हम दूसरे बड़े-बड़े उपाय करते रहते हैं, ऑपरेशन आदि कराने चले जाते हैं। बोले तुम भागवत सप्ताह करो, तुम्हारा कार्य संपन्न हागा। जिस प्रकार सिंह की गर्जना से जंगल के छोटे-छोटे प्राणी, श्रुगालादि सब भाग जाते हैं। उसी प्रकार भागवत श्रवण से कलि के सभी दोष भाग जाते हैं। यहाँ नारद जी ने बहुत बढ़िया प्रश्न पूछा है। वे सनत्कुमारों से कहते हैं- यह बात मेरी समझ में नहीं आती, आखिर भागवत वेद-वेदान्त से अलग बात तो बताता नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा.मा. 2.60
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