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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
58.बलरामजी तथा श्री कृष्ण के विवाह
अब द्वारका में पहले, राजा रैवत की कन्या रेवती के साथ बलराम जी का विवाह हुआ। फिर श्रीकृष्ण जी के पास रूक्मिणी जी का सन्देश आता है। देखो, भगवान की जो प्रकृति है वह अष्टधा है, सो उनके आठ विवाह तो विशेष हैं। उसके बाद उनके हजारों विवाह हुए। एक साथ उनकी सोलह हजार शादियाँ हुयीं। ध्यान में रखना, ऐसा नहीं था कि एक श्रीकृष्ण हों और सोलह हजार कन्याएँ हों। प्रत्येक के साथ एक-एक श्रीकृष्ण थे। लोग कहते हैं-भगवान ने सोलह हजार विवाह किये थे, तो हम दो-चार विवाह क्यों नहीं कर सकते? वे यह नहीं जानते कि भगवान ने उन सोलह हजार पत्नियों का ध्यान किस प्रकार रखा था। वह सारा वर्णन हम आगे देखेंगे-जब नारद जी भगवान की दिनचर्या देखने के लिए द्वारका में जाते हैं तब। सामान्यतः, मनुष्य एक पत्नी के साथ ही आनन्द पूर्वक रह ले, वही बहुत है। भगवान की शक्ति अपार होती है। उनकी बराबरी कोई अन्य नहीं कर सकता, इस बात को भली प्रकार से समझ लेना चाहिए। अब देखो भगवान कैसे हैं! रूक्मिणी जो विदर्भ देश के राजा भीष्मक की कन्या थीं। उनका भाई था रुक्मी। रुक्मिणी ने भगवान के गुणों की बड़ी प्रशंसा सुनी थी और इधर भगवान श्रीकृष्ण ने भी रुक्मिणी की बहुत श्लाघा सुनी थी। दोनों का मन एक दूसरे पर मुग्ध हो गया था, यद्यपि दोनों ने एक दूसरे को देखा भी नहीं था। रुक्मिणी का भाई रुक्मी श्रीकृष्ण से द्वेष करता था और वह अपनी बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ कराना चाहता था। रुक्मिणी को शिशुपाल पसंद नहीं था। वे लक्ष्मी हैं, उनको तो भगवान श्रीकृष्ण ही चाहिए। अतः वे सोचने लगीं कि अब कैसे हो‚ क्योंकि श्रीकृष्ण को तो ये लोग निमन्त्रण भी नहीं भेजेंगे। स्वयंवर का आयोजन तो होगा, पर श्रीकृष्ण को आमंत्रण नहीं दिया जायेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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