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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
29.सांख्य का विवेचन
जो व्यक्ति जली-कटी बात को सह सकता है, वास्तव में वही साधु पुरुष है।
कई बार लोग कहते हैं, ”स्वामी जी कोई दूसरा कहे तो किसी तरह सह भी लें, परन्तु हमारे स्वजन, पुत्र, पत्नी आदि ही ऐसा कहें तो कैसे सहन करें?“ 30.भिक्षुगीतपूर्व के प्रसंग में वेणु गीत, गोपी गीत तथा पिंगला गीत हम देख चुके हैं। अब एक सुन्दर गीत आता है जिसे ‘भिक्षु गीत’ कहते हैं। इस गीत के द्वारा सहन शक्ति को बढ़ाने का उपाय बताया गया है। अवन्ती नगरी में एक ब्राह्मण रहता था। उसने परिश्रम करके बहुत धन संग्रहीत कर लिया था। कामी, क्रोधी व लोभी तो वह था ही, साथ ही वह ऐसा कंजूस था कि क्या बताएँ। ‘चमड़ी जाये लेकिन दमड़ी नहीं जाये’ यह कहावत उस पर सही उतरती थी। न तो वह स्वयं धन का उपयोग करता था और न ही किसी और को, यहाँ तक कि पत्नी बच्चों को भी नहीं करने देता था। घर वाले परेशान हो गये थे। दैव योग से ऐसा हुआ कि उसका धन समाप्त होने लगा, लोगों ने भी उसका धन छीनना-झपटना शुरू कर दिया, इस तरह उसका सब धन चला गया और वह दरिद्र हो गया। उसने अपने धन का उपयोग न कभी धर्म के लिए किया न भोग के लिए, अन्ततः उसकी बुरी स्थिति हो गयी। तब उसको कोई पूछता भी नहीं था। ऐसा होने पर न जाने उस पर कैसी भगवत् कृपा हुई कि उसके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया। ‘अर्थमनर्थ भावय नित्यं’[3] - वह सोचने लगा कि अर्थ से मैंने इतनी आसक्ति की कि न कुछ खाया, न खिलाया, न ही धर्म किया, और अब उसी अर्थ के कारण इतना अनर्थ हो गया है। फिर वह धन के दोषों पर विचार करने लगा। इच्छाओं को पूर्ण करने पर वे और बढ़ जाती हैं, कामनापूर्ति से लोभ बढ़ता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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