विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
43.श्रीकृष्ण का मथुरा प्रवेश
रथ से उतरकर भगवान मथुरा में प्रवेश करते हैं। भगवान जान-बूझ कर उतर आये हैं। इसलिए कि मथुरा की गलियों में जाकर जहाँ-जहाँ उनके भक्त बैठे हुये हैं, उन सब को दर्शन देना है। उन सब का दर्शन स्वयं भगवान को भी करना है। साथ ही, (छूटते ही) भगवान वहाँ पर कंस तथा अन्य असुरों व दुष्ट जनों के मन में भय का संचार भी करना चाहते हैं। और देखो इतने में क्या हुआ? एक धोबी कंस के बहुत सारे कपड़े लेकर जा रहा था। उसे बड़ा अभिमान था कि कंस का नौकर है। प्रायः जो नौकर बड़े लोगों की नौकरी में हाते हैं, उन्हें उसका भी अभिमान हो ही जाता है। श्रीकृष्ण उस धोबी से कहते हैं, “इसमें हमारे योग्य जो कपड़े हों हमें दे दो।” वह रजक कपड़े नहीं देता। (यह धोबी कौन है, मालूम है? यह वही है जो रामावतार के समय भी धोबी था। अभी भी उसका मन शुद्ध नहीं हुआ था। लेकिन रामावतार में भगवान ने उसे कुछ किया नहीं था। परन्तु अब भगवान उसे भी मुक्त करना चाहते हैं।) जब देखा कि वह कपड़े नहीं दे रहा है, तो भगवान श्रीकृष्ण ने उसको एक तमाचा लगाया। वह उसी से लुढ़क कर गिर पड़ा और मर ही गया। भगवान ने कपड़े ले लिये। अपनी गोपाल मण्डली को भी भगवान ने कपड़े दे दिये। उनसे कहा-तुम भी पहन लो, जिसको जैसा समझ में आये वैसा वाला लेकर पहन लो। पता नहीं शहर के कपड़े कैसे पहने जाते हैं, बस किसी तरह पहन लो। अब भगवान तो छोटे हैं, जबकि कपड़े बहुत बड़े हैं। इतने में वहाँ एक दर्जी आ पहुँचता है। उसके मन में भगवान के प्रति बहुत प्यार था। वह कहता है- मैं इन्हें आपके नाप से बनाकर सिल देता हूँ। तो भगवान बोले -ले लो। दर्जी ने कपड़े सिल दिये। भगवान ने उसका कल्याण कर दिया। फिर एक माली के ऊपर भी भगवान ने कृपा की। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज