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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
4.वसुदेव जी का कंस को वचन देना
वसुदेव जी बहुत गंभीर स्वभाव के हैं। सत्त्वगुण प्रधान अन्तःकरण, सात्त्विक बुद्धि और शुद्ध मन, ये ही देवकी और वसुदेव हैं। देखो कितनी गंभीरता है। वे पहले सौम्य भाव से कंस को समझाते हैं, “अरे कंस! तुमको अपने मरण का समाचार सुनकर इतना डर लग रहा है?”
“जिसका जन्म हुआ है उसका मरण तो एक न एक दिन होने ही वाला है। तुम इनको मार डालोगे तो क्या तुम अमर हो जाओगे? थोड़ा सोचो। जिसका जन्म हुआ है वह तो मरेगा ही। देह मरता है परन्तु आत्मा तो अविनाशी है। आकाशवाणी सुनते ही तुम इनको मारने के लिए तैयार हो गए? गुणों की माया में इस प्रकार से मत फँसो।” जब कंस ने इस बात को नहीं समझा, तब वसुदेव जी भावना प्रधान तर्क देते हैं कि-
यह तो तुम्हारी छोटी बहन है, बाला और कृपणा है, बिल्कुल दीन है ‘पुत्रिकोपमा’ तुम्हारी पुत्री के समान है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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