विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
29.वेणुगीत
सृष्टि के सौंदर्य से उत्साहित हो कर भगवान ने जब मधुर वेणुनाद किया तो उसे सभी वृन्दावन-वासियों ने सुना। सब-के-सब दौड़ते हुये भगवान के पास पहुँच गए।
ध्यान में रखना, अभी भी यदि कोई सुनना चाहे तो भगवान का वेणुनाद सुनाई दे सकता है। आखिर भगवान वेणु बजाकर करते क्या हैं? हमें अपने पास बुलाते रहते हैं। देखो, किसी ने कहा भगवान रामचन्द्र जी ने तो वेणु बजायी ही नहीं। बोले, बजाने की जरूरत क्या थी? वे इतने सुन्दर थे, कि जब वे चलते थे तो लोग अपने आप उनके पीछे-पीछे जाते थे। वेणु बजाने की जरूरत ही नहीं थी। ओ हो! माने, भगवान श्रीकृष्ण में आकर्षण कम था? बोले न, न, न! तब तक युग बदल गया और लोगों का मन ज्यादा बहिर्मुख हो गया। इसी कारण से उनको बुलाने के लिए भगवान को मुरली बजानी पड़ी। अब शायद क्लेरोनेट बजाना पड़े! कुछ दिनों के बाद हो सकता है नगाड़ा बजाना पड़े। फिर भी पता नहीं हम जाएँगे कि नहीं। पूछेंगे कौन नगाड़ा बजा रहा है? अरे! नगाड़ा बजा रहे हैं तुमको बुलाने के लिए। इसीलिए तो मन्दिरों में शंख ध्वनि करते हैं कि आओ, इधर आ जाओ! इसी दृष्टि से भगवान ने वेणुनाद किया। यह वेणुगीत है। सब-के-सब दौड़ पड़े, सिर्फ दर्शन से न सही, कम-से-कम नाद सुनकर ही सही वे दौड़ पड़े, है न? अभी भी यदि हम अपना रोना-धोना थोड़ा कम करें, तो हमें भी भगवान की मरली सुनाई देने लग जाएगी। वृन्दावन में भगवान सबको आनन्दित करते जा रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10.21.20
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |