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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
1.अजामिलोपाख्यान
कान्यकुब्ज देश में एक ब्राह्मण था। वह एक अच्छा आदमी था, वेद पढ़ता था, पूजा-पाठ भी करता था। लेकिन एक बार उसने जंगल में एक शूद्र को वेश्या के साथ प्रणय लीला करते देख लिया। दोनों शराब पिये हुए थे, एक दूसरे के गले में पड़े थे, उनको उस अवस्था में देखा तो उस ब्राह्मण का मन बिगड़ गया। अपने मन को वह बहुत समझाने लगा, परन्तु मन माने ही नहीं। घर में उसकी पत्नी थी जो बड़ी अच्छी थी। लेकिन अब वह उसी स्त्री का ध्यान करने लगा। और जब उससे रहा नहीं गया तो वह उस वेश्या के पास जाने लगा। शराब पीने लगा। उसको धन देने लगा। अपनी पत्नी को घर से निकाल दिया। और उस वेश्या को घर ले आया। और तरह-तरह के पाप-कर्म करने लगा। संध्या वंदन आदि सब छोड़ दिया, वह महापापी बन गया। उसका नाम था अजामिल। ‘अजामिल’ शब्द का अर्थ भी समझ लेना चाहिए। ‘अजामिल’ शब्द का दो प्रकार से विच्छेद होता है। एक है अजा-मिल। अजा, यह प्रकृति का नाम है, माया का नाम है। जो माया के साथ मिल गया है, उसे अजामिल कहते हैं। और दूसरी रीति से देखें तो अज+अमिल, अज माने अजन्मा परमात्मा, उससे जो नहीं मिला हुआ है वह अजामिल। देखो, जो परमात्मा से नहीं मिला है लेकिन माया से मिला हुआ है ऐसे व्यक्ति को अजामिल कहते हैं। विचार करने पर पता चलता है वह हम ही हैं। परन्तु अब वैसे नहीं रहे। अब हमने भागवत सुन लिया है। यह भागवत सुनने के पहले की बात है। यहाँ अजामिल माया से लिपटा हुआ है, परमात्मा से विलग हो गया है, पाप कर्म करने लगा है। इस संदर्भ में महात्माओं द्वारा कथित एक कथा प्रसिद्ध है। उसके अनुरूप एक दिन एक महात्मा उस गाँव में आ पहुँचे। पूछने लगे कि अरे इस गाँव में कोई दानी आदमी है? देखो कुछ लोग बड़े दुष्ट होते हैं, बोले अजामिल बड़ा दानी आदमी है। बहुत अच्छा आदमी है, आप उसके घर जाइए। अब उन महात्मा को क्या पता, वे वहीं चले गए। अजामिल तो घर पर नहीं था, वह वेश्या स्त्री थी। उस घर में जाते ही महात्मा पहचान गए कि वह किस प्रकार का घर है। उनको उसके ऊपर दया आ गई। संत हृदय है न। उधर एक बच्चा खेल रहा था। उन्होंने पूछा - इसका नाम क्या है? वह स्त्री बोली - महाराज अभी तक हमारे घर कोई संत आए नहीं। इसलिए इसका नाम रखा ही नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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