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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
3.नारद जी तथा भक्ति का संवाद
नारद जी आगे कहते हैं कि चलते-चलते मैं वृन्दावन पहुँचा। वहाँ मैंने एक आश्चर्य देखा। एक सुन्दर तरुणी स्त्री और दो वृद्ध तरुण थे। वृद्ध तरुण? बोले - हाँ। वे उसके बेटे थे लेकिन वृद्ध हो गये थे और बेहोश पड़े थे। उस स्त्री के साथ उसकी सखियाँ भी थीं जो उसकी सेवा कर रहीं थीं। वह तरुण युवती रो रही थी। जब उसने मुझे देखा तो मेरे पास आयी और कहने लगी’’, नारद जी आप जैसे सन्तों का दर्शन बड़ी कठिनाई से, और बड़े भाग्य से होता है। आप मेरा दुःख दूर कीजिए।’’ तो मैंने उससे पूछा कि तुम कौन हो? वह बोली ‘भक्तिरिति ख्याता’ मैं भक्ति हूँ। ये दोनों मेरे पुत्र हैं ज्ञान और वैराग्य। और ये स्त्रियाँ गंगा, यमुना, कावेरी आदि नदियाँ हैं, मेरी सेवा में लगी है, परन्तु मैं बहुत दुःखी हूँ। मेरा जन्म द्रविड़ देश में हुआ, कर्नाटक में मेंरी वृद्धि हुई, महाराष्ट्र में थोड़ी और बड़ी हुई और गुजरात मे जाकर क्षीण हो गई। इसका अर्थ यह हुआ कि गुजरात में भक्ति नहीं है। गुजरात के लोगों ने इसको अच्छे भाव से लिया है। बोले, हमारे यहाँ भक्ति नहीं है, तो हमें भक्ति करने की ज्यादा आवश्यकता है। इसलिए भागवत का प्रचार भी गुजरात में ज्यादा है। तो भक्तिमाता कहती हैं, वहाँ मैं जर्जर हो गयी, बूढ़ी हो गयी और मेरे बेटे भी बूढे हो गये। वृन्दावन में आकर मैं तो युवा हो गयी परन्तु ये दोनों बूढ़े ही बने हुए हैं। कैसी विचित्र बात है कि माता तो युवा हो और बेटे बूढ़े हो गए हों! देखो, जगत में जब ज्ञान-भक्ति-वैराग्य को कोई पूछने वाला न रहे, तो वे बूढ़े ही हो गये कि नहीं? अभी जो हम दूरदर्शन ही करते बैठे रहते हैं तो रामदर्शन, कृष्णदर्शन, कहाँ से होगा? भगवद्दर्शन कहाँ से होगा? क्योंकि आज टी.वी वीडियो की माँग, बिक्री ही ज्यादा है। हमारे जो शास्त्र हैं, धर्मग्रन्थ है वे out of print - बूढ़े हो गये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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