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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
14.नामकरण-संस्कार
शुकदेव जी आगे कहते हैं- यदुवंश के पुरोहित थे महर्षि गर्ग। वसुदेव जी गर्ग महर्षि से कहते हैं- भगवान ! मेरे बच्चे का जन्म तो हुआ, लेकिन अब तक उसका कोई संस्कार नहीं हुआ है। नामकरण संस्कार भी नहीं हुआ। इसलिए आप गोकुल में जा कर नन्द के घर में जा बच्चा है उसका और उसके बड़े भाई का नामकरण कीजिए। तब गर्ग महर्षि गोकुल में आते हैं। नन्दबाबा उनका स्वागत करते हैं। फिर उनसे अनुरोध करते हैं कि आप इन दोनों बालकों का नामकरण संस्कार कीजिए। गर्ग महर्षि कहते हैं कि देखो, बात यह है कि मैं यदुवंश का आचार्य हूँ। यदि मैं तुम्हारे बच्चे का नामकरण करूँ, तो सारे लोग समझ जाएँगे कि यह देवकी का पुत्र है। कंस को भी पता चल जाएगा और फिर वह इसे मार दे तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा। सबको बड़ा कष्ट होगा। नन्दबाबा ने कहा और-तो-और मेरे स्वजनों को भी पता नहीं चलेगा। आप यहाँ गोशाला में ही इस कार्य को पूरा कर दीजिए। गर्गाचार्य तो आए ही थे उस कार्य के लिए। उन्होंने एकान्त में चुप-चाप संस्कार कर दिया। गर्ग महर्षि कहते हैं- यह बड़ा लड़का बड़ा बलशाली है। अपने गुणों से यह सबको आनन्दित करेगा, इसलिए इसका नाम होगा ‘बलराम’। सब का मेल कराने के कारण इसका नाम ‘सकर्षण’ भी होगा। और यह जो छोटा है, यह सबको अपनी ओर आकर्षित करेगा। पूर्व-पूर्व के युगों में यह श्वेत, लाल, तथा पीले वर्ण का था। अब यहाँ पर ‘कृष्ण’ काले वर्ण का बनकर आया है, अतः इसका नाम ‘कृष्ण’ होगा।
नामकरण करके गर्ग महर्षि वहाँ से चले जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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