विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
13.तृणावर्त का उद्धार
उधर आँधी के कारण किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। तब अपने बच्चे को वहाँ न देख कर यशोदा मैया घबरा गईं, व्याकुल हो गई। सबकी आँखों में वैसे ही धूल, छाई हुई थीं। जब थोड़ी धूल छँट गई, सारा वातावरण शान्त हुआ, तब सब लोग देखते क्या हैं कि धड़ाम से कुछ गिरा। उन सबने पास जा कर देखा तो एक असुर पड़ा था वहाँ पर और छोटे-से कृष्ण उसके गले में लटके हुए खेल रहे थे। सब लोग कहते हैं- बच गया! देखो यशोदा मैया और सारे गाँव वाले यही सोचते हैं कि हम सब भगवान की बड़ी प्रार्थना करते रहते हैं, जप, तप, पूजा अभिषेक करते हैं, इसलिए यह बच्चा हर बार बच जाता है। अब यशोदा मैया उसको प्यार करने लगीं, उसका माथा सूँघने लगीं, और जल्दी से दूध पिलाने लगी। देखो, यह तृणावर्त कौन है? तृणावर्त ‘कामना’ का प्रतीक है। जीवन में अविद्या हो, जड़वाद हो तो तृणावर्त आ जी जाता है, आँखों में धूल भर जाती है अर्थात् चित्त में विक्षेप, भ्रम छा जाते हैं। तृणावर्त-उद्धार का तात्पर्य यही है कि साधक को काम वासना पर विजय प्राप्त कर लेना चाहिए। एक दिन की बात है, यशोदा मैया बाल-कृष्ण को दूध पिला रही थीं। जब उन्होंने देखा कि भगवान दूध पीते ही जा रहे हैं, तो उन्हें लगा कि कहीं ज्यादा पी लिया तो अपच हो जाएगा। इसलिए, दूध पीना छुड़ाने के लिए मैया उन्हें दुलारती हैं, उनके मुस्कराते हुए मुख को चूमती है। भगवान माँ की तरफ देखते हैं। माँ भी उनकी तरफ देखती हैं। तब ज्यों ही भगवान जम्हाई लेते हुए मुँह खोला, तो मैया ने देखा कि सूर्य, चन्द्र, आकाशादि पंचमहाभूत, अन्तरिक्ष, दिशाएँ, समुद्र, पर्वत, नदियाँ सारे प्राणी आदि सारा-का-सारा विश्व वहाँ स्थित है।
भयभीत होकर मैया ने अनायास आँखे बन्द कर लीं। उस समय उन्हें पुनः आँख खोलने का साहस नहीं हो रहा था, पता नहीं फिर क्या दिखाई दे? लेकिन आँखें खोलकर देखा, तो अपने पुत्र को पहले की ही तरह मुस्कराता हुआ पाया। मैया ने सोचा मेरी आयु ज्यादा हो गई है। इसलिए मुझे ऐसे ही कोई भ्रम हो जाता होगा। चलो ठीक है, मेरा बच्चा तो ठीक है। यहाँ भगवान यह दर्शाते हैं कि यशोदा जी तो पूरे विश्व को दूध पिला रही थीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज