विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
82.सुभद्राहरण
इसके बाद सुभद्रा जी, जो श्रीकृष्ण की बहन थीं, उनके हरण का प्रसंग आता है। बड़े आश्चर्य की बात है कि बलराम जी, बहन सुभद्रा का विवाह दुर्योधन के साथ कराना चाहते थे। परन्तु श्रीकृष्ण, वसुदेव जी, देवकी माता आदि इस बात से सहमत नहीं थे। उन दिनों अर्जुन तीर्थाटन करते हुए प्रभास में पहुँच गए थे। वहाँ उन्होंने यह बात सुनी तो उनके मन में सुभद्रा से विवाह करने की इच्छा जाग उठी। इसी हेतु से, त्रिदण्डी यति का वेष बना कर वे द्वारकापुरी पहुँच गए। वर्षा काल में चार मास तक वे वहीं रहे। एक बार बलराम जी ने सम्मान पूर्वक उन्हें निमन्त्रण देकर घर बुलाया और उन्हें भोजन करवाया। तब सुभद्रा ने अर्जुन को देख कर निश्चय कर लिया कि उसे अर्जुन से ही विवाह करना है। अर्जुन तो पहले से ही वही चाहते थे। फिर एक दिन जब सुभद्रा देव दर्शन के लिए द्वारका के किले के बाहर निकलीं, तब श्रीकृष्ण, वसुदेव जी तथा देवकी माता की अनुमति से अर्जुन उन्हें वहाँ से हर ले गए। इस बात को जब बलराम जी ने सुना तो वे बहुत क्रोधित हुए। श्रीकृष्ण तथा अन्य सम्बन्धियों ने अनेक प्रकार से उन्हें समझाया तब वे शान्त हुए। फिर बहुत सारा धन, सम्पत्ति तथा दास-दासियों को दहेज के रूप में भेज दिया। इस प्रकार अर्जुन ने सुभद्रा का अपहरण करके फिर उनसे विवाह किया। अब देखो, यह सुभद्रा कौन है? यह ध्यान देने की बात है कि सुभद्रा भगवान की योगमाया है। योगमाया का विवाह वैसे तो भगवान से ही सम्भव है और किसी से नहीं। लेकिन, भगवान के इस श्रीकृष्ण लीला अवतार के समय, वे भगवान की बहन बनकर आयीं हैं, अतः उनका विवाह भगवान से नहीं हो सकता था। अर्जुन जो भगवान की ही विभूति हैं, वे भगवान से अलग होते हुए भी अलग नहीं हैं। अतः सुभद्रा का विवाह उन्हीं से हो सकता था, दुर्योधन या किसी और से नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज