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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
2.भगवान द्वारा पृथ्वी के कष्ट निवारण का आश्वासन
शुकदेव जी कहते हैं- पृथ्वी पर जब असुरों का भार बहुत बढ़ गया, कंस तथा उसके अनेक साथियों का पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ गया, तब पृथ्वी बड़ी व्याकुल हो गई। पृथ्वी कहती है कि मेरे ऊपर पर्वत, जंगल, समुद्र आदि सब हैं, इनका मुझे भार नहीं लगता, लेकिन जो पाप कर्म करने वाले हैं, उनका मुझे बहुत भार लगता है। गाय का रूप धारण कर के वह ब्रह्माजी की शरण में जाती है। पृथ्वी की जो अधिष्ठात्री देवी, पृथ्वी देवी हैं, वे गाय के रूप में ब्रह्माजी के पास जाती हैं। ब्रह्माजी सारे देवताओं और शिवजी को लेकर क्षीरसागर में निवास करने वाले जगन्नाथ भगवान नारायण के पास जाते हैं। उनसे प्रार्थना करते हैं और पुरुषसूक्त के द्वारा उनको प्रसन्न करते हैं। समाधि में भगवान उनको जो बताते हैं, उसी को ब्रह्माजी सारे देवताओं से कहते हैं।
ब्रह्मा जी कहते हैं कि भगवान ने कहा- ‘पुरैव पुंसावधृतो धराज्वरो’ पृथ्वी का संताप मुझे पहले से ही मालूम है। शीघ्र ही मैं उनके दुःख को दूर करने के लिए प्रकट होने वाला हूँ। तो भगवान यदुवंश में प्रकट होने वाले हैं और वे सारे असुरों का संहार करेंगे इसलिए ब्रह्माजी देवताओं से कहते हैं, “तुम सब भी अपने-अपने अंशों से यदुवंश में जन्म ले कर भगवान की लीला में सहयोग देना।” फिर कहते हैं-
वसुदेव जी के घर में साक्षात् परम पुरुष प्रकट होने वाले हैं। उनके प्रिय कार्य के लिए देवताओं की स्त्रियाँ भी अपने-अपने अंशों से पृथ्वी लोक पर प्रकट हों। इसीलिए बहुत सारे देवी-देवता अनेक स्थानों पर प्रकट हुए। कोई मथुरा में प्रकट हुए, तो कोई गोकुल-वृन्दावन में। हम देख चुके हैं कि भगवान रामचन्द्रजी को देखकर कितने ही ऋषि मुनि भी मुग्ध हो गए थे, वे भी गोपियों के रूप में प्रकट हुए। जनकपुरी की स्त्रियाँ भी गोपियाँ बन कर आ गईं। जितनी श्रुतियाँ-वेदमन्त्र हैं, वे सब भी गोपिका बनकर आ गईं, न जाने कितने सारे लोग आ गए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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