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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
32.त्रिगुणों के कार्यों का वर्णन
इसके बाद भगवान सत्त्व गुण, रजोगुण व तमोगुण के कार्यों का निरूपण करते हैं। संक्षेप में सत्त्वगुण का कार्य है ज्ञान, ज्ञान के प्रति जिज्ञासा। रजोगुण का कार्य है कर्म और तमोगुण के कार्य हैं आलस्य, प्रमाद व निद्रा। जो इन तीनों गुणों के परे होता है उसे निर्गुण कहते हैं। भगवान् ने यहाँ एक विशेष बात कही है।
वन में रहना सात्त्विक निवास है, गाँव में रहना राजसिक है, और नाइट-क्लब - जहाँ जुआ, सट्टेबाजी, मदिरा-पान आदि होते हैं, वहाँ रहना तामसिक है। यहाँ समझने की बात यह है कि वन में रहने वाला हर व्यक्ति सात्त्विक हो, ऐसी बात नहीं है। किन्तु सात्त्विक गुण जब बढ़ने लगता है, तब भीड़-भाड़ से दूर रहना अच्छा लगता है। ‘मन्निकेतं तु निर्गुणम्’ जो परमात्मा में रहता है, वह निर्गुण है, भगवान का भक्त है। और परमात्मा कहाँ है? वे तो सर्वव्यापी है। अतः ऐसे आदमी को इससे केाई अन्तर नहीं पड़ता कि वह गाँव में है कि जंगल में, यह भेद भी साधक अवस्था में ही होता है, उसके पश्चात नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 11.25.25
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