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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
10.नन्दघर में भगवान का जन्मोत्सव
अब हम चलते हैं नन्दभवन में। वहाँ बड़े धूमधाम से उत्सव मना सकते हैं क्योंकि वहाँ कुछ छिपाना नहीं है। प्रातः जब दूसरी सखियाँ आती हैं और उनको पता लगता है कि बच्चे का जन्म हुआ है, तो वे यशोदा को जगाती है कि उठो।
कहती हैं- जागु जसोदा! तेरैं बालक उपज्यो कुँवर कन्हाइ। इसी दिन की तुम्हें प्रतीक्षा थी, तुमने इतने सारे मनोरथ कर रखे थे कि बच्चे का जन्म होगा तब मैं इसको यह दान-भेंट दूँगी, उसको वह दान-भेंट दूँगी। अब वह सब निकालो। ‘जो तू रच्यौ-सच्यौ या दिन को’ इस दिन के लिए जो कुछ बचाकर रखा था अब सबको बाँटो। यशोदा जी कहती हैं, “हाँ, हाँ, दूँगी, मैं कंजूस थोड़े ही हूँ।” ‘तब हँसि कहति जसोदा एसैं’ इनके पिता को तो बुलाओ। उनसे कहो- ‘प्रगट भयौ पूरब तप कौ फल’ पूर्व तप का फल अब प्रकट हुआ है, पुत्र का मुख देखने के लिए जल्दी से आइए। नन्दबाबा आए- ‘आए नन्द हँसत तिहिं औसर, आनन्द उर न समाइ।’ देखो, उनको ज्यादा आयु के बाद बच्चा हुआ, इसलिए इतना आनन्द हो रहा है। बच्चे का सुख पाने के लिए नन्दबाबा और यशोदा जी ने न जाने कितने देवी-देवताओं की पूजा की, आराधना की, व्रत किया, तप किया। परिणाम स्वरूप अब उनके घर में भगवान प्रकट हुए हैं।
अब नन्द बाबा के घर में भीड़ लग गई। क्योंकि वे गोकुल के राजा हैं, सबसे बड़े हैं। इनका बड़ा मकान है। कई लोग आ रहे हैं और जा रहे हैं, बड़ी भीड़ हो रही है। कोई उपहार लेकर आ रहे हैं, तो कोई ले कर जा रहे हैं। नन्दरानी किसी को कोई चीज, तो किसी को कोई और चीज दे रही है। सूरदास जी ने एक पद में उसका बड़ा सुंदर वर्णन किया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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