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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
7.द्वितीय प्रश्न - भक्त के लक्षण
फिर वे दूसरा प्रश्न पुछते हैं। कहते हैं, ‘‘भागवन, आपने अभी भागवत धर्म बताया। साधना भी बतायी। अब कृपा करके यह भी बताइये कि जो भगवान का भक्त बन गया, जिसे भागवत कहते हैं, जो परमभागवत है, उसके लक्षण क्या होते है? उसके धर्म क्या होते हैं? उसका स्वभाव, उसका वर्तन, उसका व्यवहार कैसा होता है? क्योंकि भक्त भी अनेक प्रकार के देखे जाते हैं। भले ही वे सभी भगवान से प्रेम करतें हों तथापि उनमें भेद दीखता है, वे सब एक ही श्रेणी के हों ऐसा नहीं लगता। अतः आप कृपा करके मुझे बताइये कि सर्वश्रेष्ठ भक्त कौन होता है? उसके लक्षण क्या होते हैं?’’ तब हरि नाम के योगी उन्हें उत्तम भक्त, मध्यम भक्त तथा सामान्य भक्त के लक्षण बताते हैं। ग्रन्थ के प्रारम्भ में ही हम देख चुके हैं कि भागवत किसे कहते हैं। जो भगवान का भक्त होता है उसे भागवत कहते हैं। भगवत प्राप्ति का जो साधन है उसे भी भागवत कहते हैं और भगवान का जो स्वरूप है वह तो भागवत् है ही। तो स्वयं भगवान भागवत हैं, भक्त भागवत है, और भगवत प्राप्ति का साधन भी भागवत है। इस रीति से भी सब अद्वैत ही है। देखो, यहाँ योगेश्वर हरि ने विदेह राज निमि के दूसरे प्रश्न का सीधा-सा उत्तर दिया है। पहले उत्तम भक्त फिर मध्यम भक्त और अन्त में सामान्य भक्त कौन होता है, यह बताया हैं उत्तम भक्त के लक्षण अधिक विस्तार से बताए गये हैं। इस संदर्भ में, सारे भक्तों को ध्यान में लाने की बात यह है कि ये लक्षण इसलिए नहीं बताये जाते कि हम दूसरों को जाँचें और प्रमाण पत्र देते फिरें कि यह उत्त्म भक्त है, यह मध्यम भक्त है और यह सामान्य भक्त है, दूसरों को ऐसे प्रमाण पत्र देने वाला स्वयं अधम भक्त होगा। इसलिए ऐसा नहीं करना चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 11.2.44
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