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अगले अध्याय में चार प्रकार के प्रलय अर्थात Dissolution, बताये गये हैं। अब तक हमने सृष्टि का निरूपण देखा है, अब प्रलय को भी देखेंगे।
(1) नित्य प्रलय - प्रतिदिन का हमारा शयन ही नित्य प्रलय है। जब कोई जीव सो जाता है तो उसका संसार, सुख-दुःख सब लीन हो जाते हैं। यह प्रतिदिन होता है। और वह जब जागता है तो फिर से सृष्टि हो जाती है, सो जाने पर पुनः लय हो जाता है। और फिर, संसार के सभी प्राणी नित्य ही उत्पन्न व नष्ट होते रहते हैं। सभी पदार्थ नित्य परिवर्तित होते रहते हैं। यह भी नित्य प्रलय ही है।
(2) नैमित्तिक प्रलय - किसी निमित्त के कारण जो प्रलय होता है, उसे नैमित्तिक प्रलय कहते हैं। काल की गणना हम देख चुके हैं। लाखों युग का एक महायुग होता है। और एक हजार महायुगों के बीतने पर ब्रह्माजी का एक दिन होता है। ब्रह्माजी का एक दिन समाप्त होने पर जो प्रलय होता है, उसे नैमित्तिक प्रलय कहते हैं।
(3) प्राकृत प्रलय - ब्रह्माजी की आयु सौ साल की बतायी जाती है। उनके सौ साल पूरे होने पर जो प्रलय होता है, उसे प्राकृत प्रलय कहते हैं।
(4) आत्यन्तिक प्रलय - आत्यन्तिक अर्थात पूर्णतः। दूसरे प्रलयों में सृष्टि के बीज नष्ट नहीं होते, अतः प्रलय और सृष्टि का क्रम बना रहता है। इसलिए हमें बारम्बार इस बन्धन रूपी सृष्टि की प्राप्ति होती रहती है। परन्तु आत्यन्तिक प्रलय ज्ञान से होता है। अतः हम चाहें तो सृष्टि का आत्यन्तिक प्रलय इसी समय कर सकते हैं।
जैसे, जब हम सिनेमा देखते हैं तो प्रलय करके ही देखते हैं। सिनेमा, नाटक आदि देखते समय हमें ज्ञात होता है यह सब वास्तविकता नहीं है - मिथ्या है। यदि ऐसा समझकर देखें, तो उसका आत्यन्तिक प्रलय हो ही गया है, उसके लिए सिनेमा की समाप्ति आवश्यक नहीं है। वह हमें दुःखी-सुखी नहीं कर सकता है। हाँ, नाटक देखते हुए उसमें आने वाले दृश्यों के अनुरूप कभी हँस लेते हैं, कभी रो लेते हैं तो कभी भयभीत भी हो जाते हैं, लेकिन नाटक समाप्त होने पर हम पूर्ववत ही रहते हैं। तो आत्यन्तिक प्रलय होता है ज्ञान के द्वारा।
जब ज्ञान की दृष्टि से इस सृष्टि को देखते हैं तो समझते हैं कि तत्त्व केवल एक ही है, वही तत्त्व विभिन्न नाम रूप धारण करके नाना रूप से भास रहा है। इसमें कोई दूसरा सत्य, तत्त्व नहीं है। ऐसा जानना ही आत्यन्तिक प्रलय है। इस प्रकार शुकदेव जी ने परीक्षित को चार प्रकार के प्रलय समझाकर बताए हैं।
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