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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
4.नारद जी की सनत्कुमारों से भेंट
भागवत के समस्त श्लोंको में वेदान्त ही बताया गया है। तब वेद से बढ़कर भागवत की ऐसी क्या विशेषता है? क्या भागवत में ऐसी कोई नयी बात बतायी गई है जो वेदों में न हो? तो सनत्कुमारों ने कहा- बात तो तुम ठीक ही कहते हो। भागवत में वेदान्त ही बताया गया है, तथापि भागवत की विशेषता ऐसी है कि जैसे आम्र फल में आम के पेड़ का ही रस व्याप्त होता है, उसमें दूसरी कोई चीज नहीं होती, तथापि आम का स्वाद तो फल में ही आता है, पेड़ के दूसरे किसी भी भाग में नहीं आता । आगे निरूपण आता है कि ‘निगम कल्पतरोर्गलितं फलम्’[1] यह भागवत वेदरूपी कल्पवृक्ष का पका हुआ फल है, जो स्वयं गिरा है। देखो, पेडा का ही सार फल में होता है, लेकिन पेड़ में और फल में अन्तर होता है कि नहीं? और जैसे दूध से ही घी बनना है, लेकिन दीपक जलाना हो तो घी के स्थान पर दूध डालेंगे तो दिया जलेगा क्या? दूध से ही घी बनता है। लेकिन घी की अपनी अलग विशेषता है। इसी प्रकार, गन्ने का जो रस है वह गन्ने से अलग है।
गन्ने में जो शक्कर है वह पूरे गन्ने में व्याप्त है, लेकिन गन्ने का सारा भाग मीठा है क्या? नहीं। गन्ने से जब रस को अलग करके शक्कर बना लेते हैं, तो उस शक्कर का स्वाद कहीं से भी ले वह मीठा ही होता है। उसमें रस होता है।
इस भागवत के विषय में एक बढ़िया बात बतायी गई है। यह भागवत कथा क्या है? बोले ‘ब्रह्म’ शब्द का तात्पर्य वेद भी माना जाता है। अतः यह भागवत वेद की बराबरी का है। उसको पुराण ग्रन्थ कहकर छोटा नहीं समझना चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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