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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
6.वराह भगवान के साथ हिरण्याक्ष का युद्ध
देखो नाम क्या है- ‘सुदर्शन’ सुंदर दर्शन है, भगवान का दर्शन हो जाता है तो माया-मोह रह सकते है क्या? लेकिन फिर भी वह दौड़ पड़ता है भगवान की ओर। और फिर यहाँ एक विस्मयकारी घटना घटती है। यहाँ पर भगवान उसके कान पर एक तमाचा मारते हैं और बस! उलट-पुलट कर वह गिर पड़ता है। और मर जाता है। देखो, यहाँ पर यह एक बड़े आश्यर्च की बात है कि जो काम अस्त्र-शस्त्रों से भी नहीं हुआ वह सिर्फ भगवान की एक चोट से हो गया! भगवान कहते हैं - मेरा एक हाथ अस्त्र-शस्त्रों से भी ज्यादा शक्तिशाली है। मुझे अस्त्र-शस्त्र की कोई जरूरत नहीं है एक चोट से ही वह मर गया। इस प्रकार हिरण्याक्ष का वध हुआ। हिरण्यकशिपु की कथा को हम सातवें स्कन्ध में देखेंगे। हिरण्याक्ष के साथ जब युद्ध हुआ और उस समय भगवान की पूँछ आदि से जो समुद्र का जल ऊँचा उड़ा वह ऊपर के लोकों में जा गिरा। वे सब-के-सब पवित्र हो गये। यह वराह अवतार भगवान का यज्ञावतार है। वराह भगवान के अंग-प्रत्यंग में यज्ञ की सामग्री है, वे यज्ञावतार हैं, यज्ञ स्वरूप हैं। सब लोग उनकी तारीफ करते हैं, स्तुति करते हैं। इस प्रकार मनु महाराज के लिए पृथ्वी ऊपर लाकर रख दी गयी थी, है न? लेकिन बीच में वराह अवतार का प्रसंग आया तो उसे भी हमने विस्तार से देख लिया। अब फिर से हम पूर्व प्रसंग में लौट आते हैं। देखो, भगवान ही सारा काम करते रहते हैं। ब्रह्मदेव को भी जब चिन्ता हुई, तो भगवान वराह अवतार लेकर आये और पृथ्वी को बाहर निकाल कर पुनः समुद्र पर स्थापित किया। हिरण्याक्ष ने अनेक बाधाएँ उत्पन्न कीं, अवरोध खड़े किये, तो उसको भी मार दिया। अब यदि हम अपने जीवन को भी ध्यान पूर्वक देखे तो पता चलता है कि हमारा भी सारा काम भगवान ही करते रहते हैं। हमें व्यर्थ ही में अभिमान होता रहता है कि हमने किया। और इसलिए चिन्ता भी होती रहती है। दो बातें हैं- जब काम बन जाता है, तो हमें लगता है कि हमने किया। तब अभिमान हो जाता है। और जब काम नहीं बनता - तो चिन्ता करते रहते हैं। अभिमान करना और चिन्ता करना, दोनों ही मूर्खता के लक्षण हैं। अतः यह बात समझनी चाहिए कि सारा काम तो भगवान ही करते हैं। समझकर फिर उन पर विश्वास करना चाहिए, श्रद्धा रखनी चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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