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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
4.आदर्श की परिसीमा - भगवान श्री राम
भगवान का स्वभाव ऐसा है कि वे किसी के रूप से, जाति से, ऐश्वर्य से, अच्छा बोलने की क्षमता से, या बुद्धि से प्रसन्न नहीं होते। न तोषहेतुः- ये सब भगवान को संतुष्ट करने के साधन नहीं है। यदि ऐसा होता तो वानरों में क्या था? उनमें कौन सी विशेषता थी? न तो उनका रूप सुंदर था, न जाति श्रेष्ठ थी, न उनमें बुद्धि थी और न ही वाक्चातुर्य लेकिन लक्ष्मणाग्रज भगवान ने उनके साथ भी मित्रता की, क्योंकि-
भगवान को केवल प्रेम ही प्रिय है। वास्तव में देखें तो भगवान रामचन्द्र जी का जीवन समझना और उसका पालन करना, दोनों कठिन काम है। हालाँकि हम बड़ी आसानी से कह देते हैं कि उनका जीवन सरल है, अनुकरणीय है, और भगवान श्रीकृष्ण जी का जीवन बड़ा कठिन और चिन्तनीय है। लेकिन वास्तव में भगवान रामचन्द्र जी का जीवन भी बहुत कठिन है, उनकी जैसी धर्ममर्यादा अपने जीवन में लाना बहुत कठिन है।
भगवान रामचन्द्र जी तो ऐसे हैं कि उनके लिए कोई थोड़ा भी कुछ कर दे, तो वे उसे अपना सब कुछ देने के लिए तैयार हो जाते हैं। भगवान ऐसे सुकृतज्ञ हैं कि वानरों के ऋण से भी अपने को ऋणी मानते हैं। ऐसे उत्तम भगवान की जो सर्वभाव से, हृदय से, प्यार से आराधना करता है उसको उन्हीं कोशलाधीश भगवान की प्राप्ति होती है, फिर चाहे वह नर, वानर, सुर या असुर हो, कोई भी हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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