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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
1.अम्बरीष-चरित्र
जब दुर्वासा ऋषि लौट कर आये और उन्हें इस बात का पता लगा, तो वे क्रुद्ध होकर बोले कि मुझे अतिथि रूप में स्वीकार करके फिर मेरा अपमान करते हो? और उन्होंने अम्बरीष को नष्ट हो जाने का शाप दे दिया। फिर उन्होंने अपनी एक जटा को उखाड़ कर कृत्या नाम की राक्षसी को उत्पन्न किया। अम्बरीष हाथ जोड़कर खड़े रहे, नाराज नहीं हुए। कृत्या जब अम्बरीष को मारने के लिए उनकी ओर बढ़ी तो उसी समय भगवान विष्णु का चक्र आया और उसने कृत्या को जला दिया। फिर वह सुदर्शन चक्र दुर्वासा ऋषि के पीछे लग गया। अब दुर्वासा ऋषि भाग रहे हैं। ब्रह्मा जी, शंकर ही आदि कोई भी उनको अपनी शरण में लेने को तैयार नहीं होते। और वह चक्र भी ऐसा है कि गर्दन नहीं काटता, बस उनके पीछे-पीछे चलता जा रहा है। बड़ी भयानक स्थिति हो गई, एक बार गर्दन कट ही जाये तो छुट्टी हो। लेकिन नहीं, वह तो पीछे-पीछे जा रहा है। भयभीत होकर दुर्वासा ऋषि भगवान विष्णु के पास गये। कहते हैं, “भगवान मुझे बचाइये, यह चक्र मेरे पीछे लगा हुआ है।” तो भगवान कहते हैं-
तुम मेरे पास आये हो परन्तु मैं तो भक्त पराधीन हूँ- भक्त के वश में रहता हूँ। अभी तो सुदर्शन चक्र अम्बरीष की सेवा में है, अतः इस समय उसके ऊपर मेरा भी कोई अधिकार नहीं है। अब यह चक्र तभी रुकेगा जब अम्बरीष क्षमा कर दें। फिर कहते हैं, “मेरे भक्त का कोई अपमान करता है तो मैं उसे सहन नहीं करता।” ध्यान में रखना, एक साल तक दुर्वासा ऋषि भागते रहे। भागते-दौड़ते अन्त में वे राजा अम्बरीष के पास आते हैं और उसके पैरों पर गिर पड़ते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 6.4.63
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