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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
1.अम्बरीष-चरित्र
राजा अम्बरीष लज्जित होकर कहते हैं, “महाराज आप मेरे पाँव न छूइये, क्षमा करने का मेरा क्या अधिकार होता है? मैं तो आपका दास हूँ। यदि सर्वभूतात्म भगवान मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो मुझे और क्या चाहिए? यदि मेरे मन में आपके प्रति कोई कुभाव न आया हो तो यह चक्र वापस लौट जाये।” ऐसा कहकर जब राजा अम्बरीष ने अनेक प्रकार से सुदर्शन चक्र की स्तुति की, तब दुर्वासा ऋषि को सब ओर से जलाने वाला सुदर्शन चक्र शान्त होकर भगवान के पास लौट गया। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि राजा अम्बरीष ने एक वर्ष तक भोजन ग्रहण नहीं किया। बोले, जब तक दुर्वासा ऋषि वापस नहीं आते और मैं उनको भोजन नहीं करवाता तब तक मैं भी भोजन नहीं कर सकता। एक साल के बाद जब दुर्वासा ऋषि लौट आये तो राजा अम्बरीष ने पुनः उनका स्वागत सत्कार किया, उनके चरणों की वन्दना की और उन्हें भोजन कराया। तत्पश्चात जब दुर्वासा जी ने तृप्त होकर प्रसन्न चित्त से उन्हें भोजन करने को कहा, तब अम्बरीष ने भोजन किया। तब दुर्वासा ऋषि हर प्रकार से आशीर्वाद देते हुए अम्बरीष से कहते हैं-
अनन्त भगवान के दासों का जो महत्त्व है वह आज मैंने अपनी आँखों से देख लिया। मैंने तो तुम्हारे प्रति अपराध किया लेकिन उसके बाद भी तुम दयावान बने रहे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 6.5.14
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