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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
4.मार्कण्डेय ऋषि का माया-दर्शन
इसी ज्ञान के द्वारा राजा परीक्षित को संसार से मुक्त कराने वाले शुक योगीन्द्र को नमस्कार! अन्त में प्रार्थना करते हैं कि –
भगवान! हम जन्म लेने से नहीं डरते परन्तु प्रत्येक जन्म में आपके श्री चरणों में हमारी भक्ति बनी रहे। उस हरि को नमस्कार जिनका नाम संकीर्तन समस्त पापों का नाश करने वाला है। इस प्रकार द्वादश स्कन्ध की समाप्ति होती है और इसी के साथ भागवत ग्रन्थ की भी समाप्ति होती है। देखो, यहाँ ग्रन्थ की भले ही समाप्ति होती हो, लेकिन इस ज्ञान की समाप्ति नहीं होती। इस ज्ञान का हमें बार-बार अनुसन्धान करना है और अनुसन्धान करके उस ज्ञान में स्थित हो जाना है। इसलिए अब पुनः पहला श्लोक दुहराते हैं -
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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