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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
5.उपसंहार
यह श्रीमद्भागवत निर्मल पुराण है, वैष्णवों का अत्यन्त प्रिय है। इस ग्रंथ में संन्यासियों द्वारा अनुभव किया गया श्रेष्ठ ज्ञान गाया गया है। इसमें ज्ञान-विराग-भक्ति सहित नैष्कर्म्य को प्रकट किया गया है। भक्ति सहित इसका श्रवण, पठन, चिन्तन करने वाला मनुष्य मुक्त हो जाता है। ‘सत्यं परं धीमहि’ हम परम सत्य का ध्यान करते हैं - इस कथन के साथ भागवत का प्रारंभ हुआ था और अब अन्त में भी यही कहते हैं।
हम उस परम सत्य पर ध्यान करते हैं जो स्वयं परमात्मा ही है। उन्होंने ही सर्वप्रथम यह ज्ञान ब्रह्माजी को दिया, ब्रह्माजी ने नारद जी को, नारद जी ने वेद व्यास जी को, वेद व्यास जी ने शुकदेव जी को और वही ज्ञान शुकदेव जी ने अत्यन्त करुणा करके राजा परीक्षित को दिया। उस परमसत्य को सत्य स्वरूप परमात्मा को हम नमस्कार करते हैं।
ब्रह्मा जी के लिए यह ज्ञान प्रकट करने वाले भगवान वासुदेव को नमस्कार!
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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