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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
3.परीक्षित का मोक्ष
”तुम्हें कुछ और पूछना हो तो पूछ लो। यद्यपि सात दिन पूरे हो रहे हैं, ऋषि कुमार के शाप के अनुसार तक्षक के आने का समय हो रहा है। तथापि, जब तक मैं यहाँ बैठा हूँ तब तक वह नहीं आएगा।“ शुकदेव जी परीक्षित से ऐसा क्यों कहते हैं? बोले - शुकदेव जी सर्वभूत हृदय, सबकी आत्मा हैं। उनकी ओर से तो पेड़ पौधे भी बात कर रहे थे। तक्षक की आत्मा भी शुकदेव जी ही हैं, अतः यदि शुकदेव जी उससे कहें कि अभी मेरे शिष्य को कुछ पूछना है, तुम रुक जाओ तो उसे रुकना पड़ेगा, परन्तु परीक्षित के लिए तो अब पूछने योग्य कुछ भी शेष नहीं था। कोई शंका हो तो पूछें, उनकी तो सभी शंकाएँ निवृत्त हो गयी थीं।
राजा परीक्षित कहते हैं - करुणाशील भगवन्! आप स्वयं चलकर यहाँ पधारे और आपने मेरे सामने श्री हरि को साक्षात् प्रगट कर दिया।
आपके लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि आप तो भगवान के साथ एकरूप हो चुके हैं। जो अज्ञानी लोग हैं, संसार के तापों से तप्त लोग हैं, उन पर तो आप जैसे महात्मा लोग कृपा करते ही हैं। आपने ऐसे पुराण का वर्णन किया जिसके प्रत्येक श्लोक में, प्रत्येक पद में भगवान के यश को ही गाया गया है।
अब तो मैं अत्यन्त शान्त स्वरूप ब्रह्म में प्रवेश कर चुका हूँ। अब तक्षक आदि के दंश से होने वाले मरण से मैं किंचित भी भयभीत नहीं हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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