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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
12.सप्तम प्रश्न - अवतारों की कथा
भगवान के भिन्न-भिन्न अवतारों को तथा वे किस प्रकार सृष्टि करते हैं इसका संक्षिप्त वर्णन हम देख चुके हैं। परन्तु कलियुग के लिए तथा भारतवर्ष के लिए भगवान की जो विशेष अभिव्यक्ति है, वह है ‘नर-नारायण’ का अवतार। मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, ऋषभदेव, पृथु, मोहिनी, श्रीरामचन्द्र, श्रीकृष्ण, परशुराम जी आदि का वर्णन तो पहले आ चुका है परन्तु नर-नारायण अवतार का वर्णन पहले नहीं आया है। यहाँ योगीश्वर द्रुमिल बताते हैं कि नर-नारायण भी भगवान के अवतार हैं। जब वे बदरिकाश्रम में तप कर रहे थे, तब देवराज इन्द्र ने उनका तप भग करने के लिए कामदेव, उसकी सेना (मदन कुमार एण्ड पार्टी), वसन्त ऋतु तथा मलयानिल (सुगन्धित वायु) को वहाँ भेजा था। सामान्य लोग तो इनके प्रभाव में आकर विचलित हो ही जाते थे। लेकिन, जिन नारायण भगवान की थोड़ी-सी शक्ति से ये इन्द्र देव अपना सब कार्य करते रहते हैं, उन्हीं इन्द्र देव की थोड़ी-सी शक्ति उस कामदेव में है। उन कामदेव व उनके दल का भगवान नारायण पर भला क्या प्रभाव पड़ता? तो ये कामदेव अपनी सेना सहित भगवान नर-नारायण के निवास स्थान बदरिकाश्रम में पहुँच गए और उन्होंने नृत्य गान आदि के द्वारा नारायण ऋषि के तप को भंग करने का कार्य प्रारम्भ किया। तब नारायण ऋषि ने आँखें खोलीं और उनकी ओर देखकर मुस्कराए। यह देखकर वे सब भयभीत हो गए। शिवजी की आँख खुलने पर तो कामदेव जल ही गये थे। नारायण ऋषि ने मानो उसकी ओर देखकर कहा-कामदेव! तू यह सब मुझे दिखाने के लिए आया है? फिर नारायण ऋषि ने कहा कि तुम सब घबराओ नहीं। थोड़े दिन यहीं इस आश्रम में रह लो। यह सुनकर कामदेव आदि का भय जाता रहा। उन सब ने नर-नारायण ऋषि की स्तुति की। उसके बाद नारायण ऋषि ने कई अद्भुत सौंदर्य सम्पन्न स्त्रियाँ प्रकट कीं। उनका सहज सौन्दर्य ऐसा अद्भुत और मनोहारी था कि जिसे देखकर कामदेव के साथ आयी हुई स्वर्ग की अप्सराओं का अभिमान मिट गया। नारायण भगवान ने कामदेव से कहा, “ऐसे लोगों को तो मैं उरु में रखता हूँ। अब इनमें से तुम्हें जो सबसे सुन्दर लगे उसे ले जाओ। उपहार के रूप में उसे इन्द्र को दे देना।” कामदेव जिसे ले गये उसी अप्सरा का नाम उर्वशी हुआ। इसीलिए कहा जाता है कि नारायण भगवान का ध्यान करें, तो काम नहीं सतायेगा, अन्यथा वह सबको परेशान करता रहता है। यहाँ इस प्रसंग में नर-नारायण भगवान के चरित्र का विस्तार है, जबकि अन्य अवतारों को संक्षेप में बताया गया है। पूर्व कथित अवतारों के अतिरिक्त भगवान ने अनेक कलावतार जैसे-हंस, दत्तात्रेय, सनक सनन्दन सनातन व सनत्कुमार, नवयोगियों के पिता ऋषभदेव और हयग्रीव आदि अवतार भी ग्रहण किए, और सबका कल्याण किया। देखिये, एकादश स्कन्ध का यह बड़ा महत्त्वपूर्ण खण्ड है। इसलिए इसे हम विस्तार से देख रहे हैं। नवयोगियों का यह प्रसंग बहुत सुन्दर है। इस प्रसंग में बड़े अच्छे-अच्छे प्रश्न पूछे गए हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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