विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
59.रुक्मिणी जी का संदेश व उसका रहस्य
देखो, आत्मा का वरण तो सबको ही करना है। ये भगवान श्रीकृष्ण कौन हैं? ये तो सबकी आत्मा हैं। उपनिषदों में कहा गया है कि इस आत्मा की प्राप्ति उसी को होती है जो मात्र इसी का वरण करता है। स्वयंवर करना पड़ता है, स्वयं ही उसी को चुनना पड़ता है, उसी का वरण करना पड़ता है। श्रीकृष्ण ‘परमात्मा’ है। तो रुक्मिणी ने किसी सामान्य पुरुष का वरण नहीं किया था। वह तो साक्षात् भगवान का ही वरण था। उधर रुक्मिणी जी का हृदय व्याकुल हो रहा था कि स्वयंवर का समय निकट आता जा रहा है, अभी तक ब्राह्मण देवता आये नहीं! इतने में ब्राह्मण वहाँ पहुँच गए और उन्होंने रुक्मिणी जी को भगवान के आगमन का समाचार दिया। रुक्मिणी जी सोचने लगीं कि ब्राह्मण देवता ने इतना बड़ा और इतना प्रिय कार्य किया है कि इनको देने योग्य कोई वस्तु ही नहीं है। देखो रुक्मिणी जी साक्षात् लक्ष्मी जी हैं तथापि उन्हें लगा कि मैं इन्हें क्या दूँ। तो ऐसा सोचकर रुक्मिणी जी ने उन्हें बस नमस्कार कर दिया। ब्राह्मण देवता कोरा नमस्कार लेकर ज्यों-के-त्यों रह गये। क्या बात है कि कुछ दिया नहीं? सिर्फ नमो नमो कर दिया? ध्यान में रखना लक्ष्मी जी ने नमस्कार कर दिया, यह कोई सामान्य बात नहीं है। वैसे लक्ष्मी जी ब्राह्मणों पर नाराज रहती हैं लेकिन यहाँ उन्होंने ब्राह्मण को नमस्कार कर दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कठ उप. 1.2.23, मुण्ड. उप. 3.2.3
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |