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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
24.कालिय नाग का दमन
तो यहाँ हम उनकी शक्ति, उनका प्रभाव देख रहे हैं। प्रायः मनुष्य को अपनी (मन की) आसुरी वृत्तियों से डर लगता रहता है। जब सुनते हैं कि भगवान ने केवल तीन चार साल की आयु में इन सबको खेल-खेल में मार डाला था, उनके लिए तो यह बायें हाथ का खेल था, तब मन में विश्वास का उदय होने लगता है कि मेरे पाप, मेरे दुष्कृत्य, चाहे जितने निन्दनीय क्यों न हों, मेरे मन में चाहे जितनी आसुरी वृत्तियाँ क्यों न उठती हों परन्तु यदि मैं श्रीकृष्ण को याद कर लूँ, उन्हें बुला लूँ तो क्या नहीं हो सकता। उनके लिए क्या असंभव है? देखते-ही-देखते वे सब को खत्म कर देंगे। ऐसा विश्वास मन में जगाने के लिए ही ये सारी घटनाएँ, सारे प्रसंग बताये जाते हैं। उनका प्रयोजन यही है कि मन में ऐसा विश्वास जाग जाए कि हमारे पाप भले ही हमें बहुत भयंकर लग रहे हों, घोर जान पड़ रहे हों, लेकिन भगवान उन्हें चुटकियों में खत्म कर सकते हैं। इसलिए बताते हैं कि भगवान ने दुष्ट दलन का कार्य तभी शुरु कर दिया था जब वे छः दिन के थे। यही बताने के लिए कि उनके लिए यह कोई बड़ा भारी काम नहीं है। उनके लिए यह तो खेल है। अर्थात् खेल-खेल में वे सब कर देंगे, डरो मत। लोग कहते रहते हैं मेरा मन बड़ा ऐसा है, वैसा है। काहे का मन! थोड़ा भगवान का नाम लेकर क्यों नहीं देखते। यही तथ्य दर्शाने के लिए इन लीलाओं का यहाँ इतना वर्णन किया गया है। निरन्तर एकवृत्ति- कृष्णाकार वृत्ति बनी रहे इसलिए।
भगवान के अनुग्रह से यमुना जी का पानी विषरहित ही नहीं अमृत सदृश्य मधुर हो गया। यहाँ क्रीड़ा करने के लिए ही भगवान ने मनुष्य रूप धारण किया है, वे खेल कर रहे हैं। उनके लिए यह सब कोई बड़ी बात नहीं है। सबके ऊपर उनकी जो कृपा है, जो प्यार है, वह यहाँ प्रकट हो रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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