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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
24.कालिय नाग का दमन
कालिय को समुद्र में जाने की आज्ञा देकर अपने समस्त आभूषणों से विभूषित होकर भगवान उस कालियहृद से बाहर आते हैं। यशोदा मैया, नन्दबाबा आदि सारे व्रजवासियों के आनन्द का पारावार नहीं रहा। देखो, संभव है कि अभी इन सब घटनाओं का महत्त्व स्पष्ट नहीं हो रहा हो। रासलीला के प्रसंग में इन सब बातों का महत्त्व हमें स्पष्ट हो जाएगा। भगवान यहाँ एक-एक को जीतते चले जा रहे हैं। देखो, भगवान केवल असुरों का ही दमन नहीं कर रहे हैं, केवल असुरों को ही नहीं मार रहे हैं, अपितु दूसरी ओर जितने भी देवता हैं उनको भी जीतते चले जा रहे हैं। आखिर ये नाग, गन्धर्व, यक्ष, किन्नर, ब्रह्मा ये सब तो असुर नहीं हैं। कालिय को जीत लिया माने नागलोक को जीत लिया। और ब्रह्माजी को जीत लिया, तो देवताओं को भी जीत लिया। आगे इन्द्र, वरुण आदि सबका वर्णन आता है। आगे हम इसका भावार्थ या लक्ष्यार्थ भी देखेंगे। इन सब का गम्भीर भाव भी है, अन्यथा श्री शुकदेवजी इनका इतना वर्णन क्यों करते? एक अध्याय में क्रम से कहा जा सकता था कि भगवान ने निम्नलिखित -पूतना, शकटासुर, तृणावर्त, वत्सासुर, बकासुर, अघासुर आदि असुरों को मारा। चार पंक्तियों में पूरी बात कह सकते थे। एक-एक अध्याय में एक-एक घटना कहने की बात ही न रहती। और फिर विस्तृत वर्णन का एक और कारण यह है कि हमारी वृत्तियों को एकाग्र करना है। आखिर इस जीवन का, भागवत् कथा श्रवण का, कथन का प्रयोजन क्या है? यही न कि हमारा मन, हमारी वृत्तियाँ कृष्णमय बनती जाएँ। इसलिए यहाँ एक-एक लीला का वर्णन करते जा रहे हैं। पहले यह हुआ, फिर वह हुआ, उसके बाद फिर यह हुआ और बाल्यावस्था में ही उन्होंने ऐसा किया, वैसा किया यह सब बता कर उनका प्रभाव, उनका स्वभाव, उनका ईश्वरत्व, उनकी करुणा आदि सारे गुण प्रकट कर रहे हैं। यह दूसरा कारण है इन सभी लीलाओं के सुदीर्घ वर्णन का। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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