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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
17.ऊखल-बन्धन-लीला
यशोदा जी जब दूध बचाने के लिए गयीं, तो यहाँ श्रीकृष्ण ने तोड़-फोड़ कर दी। फिर वे उलटे ऊखल के ऊपर चढ़ गये और मटके से पुराना माखन निकाल लिया। वहाँ मर्कटों की हमेशा भीड़ लगी रहती थी। वानर बहुत आते रहते थे, उनको माखन खिला रहे हैं ऊखल पर बैठ कर। बीच-बीच में पीछे मुड़कर देखते भी जा रहे हैं। माँ जब उधर लौटीं और फूटा हुआ मटका देखा तो वे सब समझ गईं। उनको उसकी तो इतनी चिन्ता नहीं हुई, लेकिन वे सोचने लगीं कि यह गया किधर? फिर उन्होंने देखा तो पाया कि ये महाराज बैठे हैं ऊखल के ऊपर। बोले, आज तो इसे पकड़ कर बाँध ही देना चाहिये, अब यह बहुत शैतानी करने लगा है। जैसे श्रीकृष्ण ने देखा कि माँ पकड़ने के लिए आ रही हैं, तो डर के मारे वे वहाँ से भाग गए। देखो क्या ही आश्चर्य है, जिनके भय से मृत्यु भी भागती है, यहाँ मैया के डर से वे ही भगवान भाग रहे हैं।
अरे! जाने कितना तप करके भी ऋषि मुनि जिनको ध्यान में भी पकड़ नहीं पाते, उनको पकड़ने के लिए यहाँ माँ दौड़ रही है। आगे-आगे भगवान दौड़ रहे हैं और माँ उनके पीछे-पीछे। जब भगवान ने देखा कि माँ उनके पीछे-पीछे। जब भगवान ने देखा कि माँ थक गयीं हैं, तो उन्होंने सोचा इनको ज्यादा थकाना ठीक नहीं है। देखो, कैसी दया है, कैसी करूणा है, भगवान पकड़ में आ गये।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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