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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
5.परशुराम-अवतार
कुछ दिन बाद सहस्रार्जुन के लड़के जमदाग्नि ऋषि के आश्रम में आए, और ध्यानस्थ देखकर उन्हें मार डाला। परशुराम वापस आये तो बोले- अच्छा! इनका यह साहस! वे अपना फरसा लेकर चल पड़े। बोले ये क्षत्रिय लोग बहुत उन्मत्त हो गये हैं, इनको बहुत अभिमान हो गया है। अब मैं पूरी पृथ्वी निःक्षत्रिय कर डालूँगा। उन्होंने इक्कीस बार क्षत्रियों को मारा और सारी पृथ्वी को दान में दे दिया। अपने लिए कुछ नहीं रखा। इस प्रकार उन्होंने अभिमानी क्षत्रियों का अभिमान चूर-चूर कर डाला। परशुराम जी भगवान के आवेश अवतार हैं। देखने में वे बड़े सुन्दर थे, लेकिन उग्र भी थे। वे किसी की ओर प्यार से भी देखते थे तो उसे लगता था कि उसका काल आ गया है। जब उग्र भाव से देखते होंगे तब क्या होता होगा आप समझ ही सकते हैं। परशुराम का नाम लेते ही सब लोग जहाँ-तहाँ भाग जाते थे। जब रामचन्द्र जी अवतार ग्रहण करके आ गये तो परशुराम जी ने सोचा कि क्षत्रिय वंश में अब अच्छा व्यक्ति आ गया है। अब मुझे कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। ऐसा सोच कर उन्होंने क्षत्रियों को मारने का काम रोक दिया। फिर वे महेन्द्राचल जा कर वहाँ रहने लगे। वे महाभारत के समय में भी थे। कर्ण उनके पास शस्त्र-विद्या सीखने के लिए गया था। परशुराम जी तो चिरंजीव हैं। कभी कभी लोग पूछते हैं- भगवान का परशुराम अवतार और श्री राम अवतार दोनों समकाल में कैसे हुए? अरे! भगवान हजारों रूप एक साथ ले सकते हैं। आप उनको समझते क्या हैं? वे भगवान हैं! उनको अपने जैसा नहीं समझना चाहिए। वे एक ही साथ कितने ही अवतार ले सकते हैं। अनेक स्थानों पर ले सकते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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