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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
6.मोहिनी-अवतार
अब बात तो प्रगट हो ही गई थी, इसलिए भगवान ने मोहिनी रूप छोड़ कर अपना वास्तविक रूप प्रकट कर दिया। देवताओं को अमृत देकर वे अन्तर्धान हो गए। देखो, यद्यपि देवता तथा असुर दोनों ने मिलकर परिश्रम किया था, तथापि भगवान से विमुख, पराङ्मुख होने के कारण असुरों को प्रयत्न करने पर भी अमृत नहीं मिला। वे उस फल से वांञ्चित रहे। भगवान के आश्रित होने के कारण देवताओं को अमृत की प्राप्ति हो गई। इसका तात्पर्य है प्रयत्न के बाद भी कार्य में सफलता उसी को मिलती है जो भगवान का आश्रय ग्रहण करता है और उन्हीं की शक्ति से कार्य करता है। एक और बात यहाँ समझने की यह है कि मत्स्य, वराह, कूर्म, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, मोहिनी आदि सब भगवान के ही अवतार है। तथापि जब भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए कहा जाता है, तो चाहे जिस अवतार का ध्यान नहीं किया जाता। पहले देख-समझ लेना चाहिए कि किस अवतार का क्या प्रयोजन था। जैसे कपिल मुनि का अवतार ज्ञान प्रदान करने के लिए हुआ था। परन्तु मोहिनी अवतार तो राक्षसों को मोहित करने के लिए हुआ था। इतना समझ लेने पर यह तो स्पष्ट ही हो जाता है कि किस अवतार का-किस साकार रूप का ध्यान करें? बोले कपिलावतार का या किसी और उपास्य रूप का ध्यान करो! मोहिनी रूप का ध्यान मत करो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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