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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
9.सनत्कुमारों द्वारा भागवत सप्ताह व उसकी विधि
व्यासपुत्र भगवान शुकदेव जी कविता लिख रहे थे। अर्जन उनको संगीतबद्ध करके गाते चले जा रहे थे। वहाँ कैसा रस प्रवाह हुआ होगा। महाराष्ट्र के संत लोग वर्णन करते हैं कि जब पंढरपुर के भक्तजन कीर्तन करने लगते थे, ‘नामदेव कीर्तन करी पुढे नाचे पांडुरंग।’ नामदेव कीर्तन करते थे, तो पांडुरंग भगवान स्वयं वहाँ आकर नृत्य करते थे। एक बार नृत्य करते-करते वे ऐसे निमग्न हो गए कि ‘गळला पीताम्बर’ उनका पीताम्बर गिर गया, लेकिन भगवान को पता ही नहीं चला। तब उन सब पर प्रसन्न होकर भगवान कहते हैं, ‘‘मैं तुम सब पर बहुत प्रसन्न हूँ। जो वर चाहिए हो उसे माँग लो।’’ अब देखो भक्तों ने क्या माँगा?
भगवान! जहाँ कहीं पर भी भागवत कथा होती रहेगी आप इसी प्रकार वहाँ आकर सबको प्रसन्न कीजिए। लोगों के मनोरथ आप पूर्ण कीजिए। हम यही वर चाहते हैं। देखो, इनको संत कहते हैं। तथास्तु कहकर भगवान अन्तर्धान हो गए। अब वहाँ पर सबने देखा कि नवयुवती रूपी भक्तिमाता के दोनों पुत्र ज्ञान, वैराग्य भी नवयुवक हो गये हैं। तब सब ओर आनन्द ही आनन्द छा गया। फिर सब लोग यथा स्थान लौट गए। श्री शुकदेव जी ने भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य को भी भागवत मे स्थापित कर दिया। उसी कारण भागवत श्रवण करने वालों के हृदय में भगवान का आविर्भाव हो जाता है। ‘क्षेमाय वै भागवतं प्रगर्जति’[2] सब के क्षेम के लिए, कल्याण के लिए श्रीमद्भागवत गर्जना करता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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