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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
9.सनत्कुमारों द्वारा भागवत सप्ताह व उसकी विधि
अन्य फलों में तो छिलका, गुठली आदि फेंक दिये जाते हैं। लेकिन इसमें फेंकने जैसी कोई चीज है ही नहीं, रस ही रस है, ‘ पिबत भागवतं रसमालयं’। कब तक पियें? बोले पीते-पीते जब तक आपका मन परमात्मा में लीन नहीं हो जाता तब तक। लीन होने के बाद मैं तुम उसी रस में डूबे रहोगे। अब आगे और भी आश्चर्यजनक बात हुई। जब शुकदेवजी वहाँ पर आ गए, तो उनके आने के बाद भगवान श्रीकृष्ण से भी वैकुण्ठ में बैठा नहीं गया। प्रह्लाद, उद्धव, अर्जुन, बलि आदि के साथ वे भी वहाँ आ गये। अब हुआ यह कि सारे भक्त कीर्तन करने लगे। बीचों-बीच ज्ञान, भाक्ति तथा वैराग्य नृत्य करने लगे। मद्भक्ताः यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामिउ नारद। मेरे भक्त जहाँ गान करते हैं, मैं वहीं रहता हूँ। ‘तत्र तिष्ठामि’? ‘तिष्ठामि’ ही नहीं नृत्यामि। मैं वहाँ पर नृत्य करता रहता हूँ। कैसे? ‘प्रह्लादस्तालधारी’ प्रह्लाद लकड़ी के करताल बजा रहे हैं। ‘उद्धव कांस्यधारी’ उद्धवजी झांझे बजा रहे हैं। नारदजी वीणा बजा रहे हैं। अर्जुन राग आलाप रहे हैं- गा रहे हैं ‘स्वकुशलतया रागकर्ता अर्जुन’। देखो, हम सब लोग अर्जुन को धनुर्धारी ही समझते रहते हैं। वे संगीत भी जानते थे, यह कितने लोगों को मालूम है? अरे, बहुत बड़े गायक थे अर्जुन। और- इन्दोऽवादीन्मृदंग जयजयसुकराः कीर्तने ते कुमारा[1] इन्द्र देव मृदंग बजा रहे हैं। कीर्तने बीच-बीच मे सनत्कुमारदि जय-जयकार करते हैं। ‘वृन्दावन विहारी लाल की जय’। अब कोई कहेगा कि कविता कौन लिख रहा था? बोले- यत्राग्रे भाववक्ता सरसरचनया व्यासपुत्रो बभूव।।[2] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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