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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
6.आत्मदेव तथा धुंधुली की कथा
जब मेरे बच्चे का जन्म होगा, तो मैं तुमको बच्चा दे जाऊँगी, समझी? फिर मैं अपने यहाँ कह दूँगी कि बच्चा जन्म लेते ही मर गया। तुम मेरे पति को पैसे दे देना। उस समय की स्त्रियाँ भी ऐसा व्यवहार करती थीं। इसमें बड़ी योजना है। लेकिन प्रश्न उठा कि बच्चे को दूध पिलाना पड़ेगा। वह कैसे होगा? तो बहन ने कहा मैं आकर दूध पिला दिया करूँगी। कुछ समय के बाद धुधुली नाटक करने लगी कि वह गर्भवती हो गई है। फिर जब उसकी बहन को बच्चा हुआ तो वह आकर बच्चा दे गयी। धुंधुली ने पूर्व कथनानुसार उसे पैसे दे दिये। फिर धुंधली कहने लगी मेरे स्तन में दूध ही नहीं है। लेकिन मेरी बहन को अभी बच्चा हुआ था। उसके स्तन में दूध है, अतः वह आकर दूध पिला दिया करेगी। आत्मदेव ने सोचा ठीक ही है। बहन आकर दूध पिलाने लगी। बहन ने एक और बात कही थी। संन्यासी के द्वारा दिये गये फल की शक्ति को देखने के लिए उस फल को तुम अपने घर की गाय को खिला दो और देखो कि क्या होता है? धुंधुली ने ऐसा ही किया था। अब ऐसा आश्चर्य हुआ कि वह फल जिस गाय को खिलाया गया था वह गर्भवती हुई और गाय ने एक सुन्दर कुमार को जन्म दिया। उसके कान गाय के कान जैसे थे इसलिए उसका नाम गोकर्ण रखा गया। सोचा गया कि धुंधली के बच्चे का नाम क्या हो तो वह स्वयं बोली- मेरा नाम धुंधुली है, तो इसका नाम धुंधुकारी होना चहिए। जो बहुत धूम-धाम करता रहे उसको धुंधुकारी कहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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