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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
8.कपिल भगवान से माता देवहूति का ज्ञानार्जन
देखो, ये कपिलदेव जी ज्ञानावतार हैं। और वह माँ भी देखो कैसी है, उनका मोह दूर हो गया था, अतः ‘विस्रस्तमोहपटला तमभिप्रणम्य’ वे कपिल भगवान को (अपने पुत्र को) प्रणाम करती हैं और कहती हैं, ”आपने मुझे इस संसार के बन्धन से छुड़ा दिया। मैं आपको कैसे धन्यवाद दूँ? पुनः प्रणाम करती हैं।“ उनको प्रसन्न करके कपिलमुनि चले जाते हैं, कहते हैं कि वे गंगा सागर के पास बंगाल में चले गए। यहाँ उनकी माताजी यानी देवहूति ने उसी आश्रम में बैठकर ऐसा ध्यान लगाया कि कई-कई दिनों तक उनको अपनी देह का भी भान नहीं रहता था। देवी-देवता आकर उनके देह की रक्षा करते थे। और इसी तरह अन्त में उन्होंने अपनी देह को विलीन कर दिया।
इस प्रकार यह जो कपिलमुन के द्वारा दिया गया ज्ञान है, इसका जो कोई वर्णन करता है, श्रवण करता है, चिन्तन करता है, उसे भगवान के श्री चरणों में दृढ़ भक्ति प्राप्त होती है ऐसी इसकी फलश्रुति है। इसी प्रसंग के साथ यह तीसरा स्कन्ध समाप्त होता है यह सर्ग का वर्णन हुआ, अब अगले स्कन्ध में विसर्ग का वर्णन है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 3.33.37
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