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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
8.कपिल भगवान से माता देवहूति का ज्ञानार्जन
कपड़ा उसके शरीर पर है भी या नहीं, उसको कुछ पता नहीं चलता। इसी प्रकार आदमी जब समाधि में रम जाता है, तब देह-गेह, मन आदि सब हट जाते हैं, फिर आँखें खुली हों तो भी क्या?
वह तो सारे प्राणियों को आत्मा में देखता है और सब प्राणियों में आत्मा को देखता है। इस प्रकार वह अद्वैत में स्थित हो जाता है। ऐसी स्थिति सबीज समाधि के द्वारा प्राप्त होती है। माता देवहूति ने कहा - भगवन् आपने इस सबीज समाधि का बड़ा सुन्दर वर्णन किया। तत्त्वों को भी अच्छी तरह से बताया। अब भक्तियोग का भी विस्तार से वर्णन कीजिये।
भगवान कहते हैं भक्ति तो सभी करते हैं लेकिन किसी की भक्ति तामसिक होती है किसी की राजसिक होती है, तो किसी की सात्त्विक। कोई-कोई भूत-प्रेत की पूजा करते रहते हैं। ये लोग तामसिक पूजा करते हैं। - किसी को मारने के लिए या किसी को लूटने के लिए। कोई तो देवताओं की उपासना करते हैं अपनी ही कामना पूर्ण करने के लिए। वे लोग राजसिक होते हैं और जो निःस्वार्थ होकर भगवान की उपासना करते हैं वे सात्त्विक भक्त हैं। और निर्गुण भक्ति जो सर्वश्रेष्ठ भक्ति है, उसके बारे में वर्णन करते हुए भगवान कहते हैं कि असली भक्त तो वह है कि जिसे मुक्ति भी दी जाये तो उसे भी लेने को तैयार नहीं होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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