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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
7.भगवान का ज्ञानावतार (कपिलावतार)
देखो भगवान की दो शक्तियाँ होती हैं एक कर्म शक्ति ओर दूसरी ज्ञान शक्ति। तो ज्ञान भी प्रकट होता है और कर्म भी प्रकट होता है कर्म की शक्ति से उन्होंने हिरण्याक्ष का वध किया और ज्ञान की शक्ति से अब ज्ञान का पचार करने वाले हैं। कपिलावतार ज्ञानावतार है और यह बड़ा प्रसिद्ध अवतार है। ‘मैं जन्म लूँगा और उनको (देवहूति को) ज्ञान दूँगा तो वह भी मुक्त हो जाएँगी, ज्ञान की स्थापना हो जाएगी’ ऐसा वर देकर भगवान अंतर्धान हो गये। अब कर्दम ऋषि निश्चिन्त भाव से बैठे थे। तब सम्राट् मनु अपनी पत्नी शतरूपा और पुत्री देवहूति के साथ रथ में बैठकर इनके पास आते हैं। कर्दम ऋषि उनका स्वागत करते है और कहते है- महाराज, आप यहाँ कैसे आये? आपकी क्या इच्छा है, मुझे बताइये। मैं आपकी इच्छा को पूर्ण करूँगा। वैसे ये जानते हैं उनकी क्या इच्छा है। मनु महाराज कहतें हैं- यह मेरी कन्या है देवहूति। इसका विवाह मैं आपके साथ करना चाहता हूँ। बोले बाढम्! अवश्य, मैं तैयार हूँ। मैं भी विवाह करना चाहता हूँ। देखो, ये मनु इतने बड़े राजा हैं, चक्रवर्ती सम्राट् हैं, लेकिन अपनी कन्या का विवाह इन्होंने उसी समय वहीं पर कर दिया, किसी प्रकार का आडंबर नहीं। मंत्रादि के साथ उनका विवाह हो गया और देवहूति को उसी समय वहाँ ऋषि के आश्रम में छोड़ दिया और घर वापस चले गये। इतना योग्य वर मिल गया, इसलिए वे बड़े प्रसन्न हैं। ऐसा नहीं सोचते कि यह तपस्वी यहाँ बैठा है, मेरी लड़की को यहाँ क्या मिलेगा। ये कर्दम ऋषि भी ऐसे विचित्र थे, विवाह तो कर लिया, उसके बाद बैठ गये तप करने के लिए। देवहूति की तरफ ध्यान ही नहीं देते। कैसी विचित्र बात है। एक ओर लगता है उसके ऊपर बड़ा प्रेम है, लेकिन वैसे देखो तो उसकी ओर ध्यान ही नहीं देते। यहाँ समझने की बात यह है कि - यह भी एक परीक्षा है, देवहूति राजा की लड़की है अतः कर्दम ऋषि देखना चाहते हैं कि वह कितना सहन करने के लिए तैयार है, क्योंकि आखिर उससे भगवान का जन्म होने वाला है, तो उसे तैयार भी करना है कि नहीं? चाहे जिसके गर्भ से भगवान का जन्म नहीं हुआ करता। बहुत लोग कहते रहते हैं अब भगवान के अवतार लेने का समय आ गया है। बोलते हैं इतन अधर्म बढ़ गया है कि अब भगवान को अवतार लेना ही चाहिए। परन्तु पश्न यह है कि भगवान के माता-पिता कौन बनेंगे? है किसी में ऐसी योग्यता? यहाँ तो लोगों को खाने-पीने से फुरसत नहीं मिलती। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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