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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
2.वराह-अवतार
दूसरा अर्थ यह है कि ये किसी कारण से सूकर बने हैं, ये सूकर हैं नहीं! सूकर के रूप में दिखाई देते हैं, लेकिन वास्तव में ये जगत के आदि कारण है। सब उनकी प्रशंसा करते हैं, स्तुति करते हैं। अब इस प्रसंग पर हम थोड़ा विचार करते हैं। नाक से सुअर का जन्म-प्राकट्य हुआ, ये सब क्या बातें हैं? इसका रहस्य ऐसा है कि आकाश का गुण हैं, शब्द, वायु का स्पर्श, अग्नि का रूप, जल का रस, और पृथ्वी का तत्त्व गुण है गन्ध। अच्छा, गन्ध का ग्रहण कैसे होता है? नाक से ही होता है, है न? उसके लिए दूसरा कोई उपाय नहीं हैं। इन्द्रियों को भगवान ने बनाया ही ऐसा है कि एक-एक इन्द्रिय के द्वारा एक ही विषय का ग्रहण होता है, अन्य विषयों का नहीं। तो गन्धवती यह पृथ्वी है। अब भगवान को यदि इस पृथ्वी का उद्धार करना हो, तो उन्हें पृथ्वी का प्रेमी बनकर आना पड़ेगा, है न? देखो, पृथ्वी से सर्वाधिक प्रेम कौन करता है? जरा विचार करके देखें, तो स्पष्ट हो जाता है कि सूअर पृथ्वी से सबसे ज्यादा प्रेम करता है। उसका नाम सूकर पड़ा क्येंकि ‘सूं सूं करोति इति सूकरः’ वह सूं-सूं करता है। उसे ध्यान से देखा है कभी? उसकी गर्दन पृथ्वी की ओर ही होती है, कभी ऊपर की ओर नहीं होती। गर्दन नीचे करके ही चलता रहता है। पृथ्वी का जो सबसे गन्दा त्याज्य अंश है, उसको भी वह अपना भक्ष्य बना लेता है। इसी से पता चलता है कि उसका पृथ्वी से कितना अधिक प्रेम है। यहाँ पर तत्त्व की बात समझनी चाहिए अरे भाई, गाय का भी जब बछड़ा पैदा होता है तब उस पर बड़ी गंदगी होती है लेकिन गाय उसका सारा मैल चाट जाती है। यह क्या है? बस प्रेम प्रकट होता है वहाँ पर, और कुछ नहीं । अपना बच्चा भी कभी अपने ऊपर गंदगी कर देता है, तो गंदा लगता हैं क्या? आप मारते हैं क्या उसको? नहीं न? एक बार मैंने एक पिता को कहा कि क्या गंदा बच्चा है। तो उसके पिता बोलने लगे- स्वामी जी, इसी दिन को देखने के लिए तो मैने शादी की थी। बोले, आप इसको गंदा बच्चा कहते हैं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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