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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
13.अष्टम प्रश्न - अभक्तों की गति
राजा निमि कहते हैं- आप सब तो ‘आत्मवित्तमाः’ आत्मज्ञानी हैं, परम भागवत हैं, लेकिन यहाँ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें अपने मन पर कोई संयम नहीं है, जिनका मन अशान्त रहता है और जो भगवान की भक्ति भी नहीं करते। वे सदा ही कामनाओं से पीड़ित रहते हैं, ऐसे लोगों की क्या गति होती है? इसका उत्तर आठवें योगीश्वर चमस जी ने दिया है। कहते हैं- भगवान की भक्ति नहीं करने वाले भी दो प्रकार के होते हैं। एक तो वे होते हैं जो अज्ञान के कारण भक्ति नहीं करते, उन्हें तो कुछ ज्ञात ही नहीं होता। इसलिए वे भगवान की भक्ति नहीं करते। और दूसरे वे होते हैं जो जानते तो सब हैं परन्तु मन में श्रद्धा नहीं होने के कारण भक्ति नहीं करते।
जो लोग भगवान का भजन नहीं करते, यही नहीं, वरन् भगवान का, भगवान के मन्दिर का, भक्तों का, शास्त्रों का तथा धर्म का अपमान भी करते हैं, उनका तो अवश्य ही अधःपतन होता है। यह एक सामान्य बात है जो सहजता से समझी जा सकती है। लेकिन-
ऐसे भी लोग होते हैं जो संस्कार के कारण, जन्म जाति के कारण, या अज्ञान के कारण भगवान से दूर रहते हैं। उनको भगवत् मार्ग पर बढ़ने का कभी अवसर ही नहीं मिलता। तो मालूम नहीं होने के कारण, अश्रद्धा के कारण नहीं-अज्ञान के कारण जो भगवान का भजन नहीं करते, उनके ऊपर तुम जैसे लोगों को दया करनी चाहिए। यहाँ चमस योगीश्वर का कहना है कि जो समझदार लोग हैं, वे धीरे-धीरे, सोपान-दर-सोपान उन अज्ञानियों को समझायें और मार्ग पर लगायें। तब शनैः-शनैः उनकी स्थिति ठीक हो जायेगी। लेकिन प्रायः पण्डित लोग अभिमानवश, समझाने के बजाय उन्हें यह कह कर दूर रखते हैं कि इसमें तुम्हारा अधिकार नहीं है। इतना ही नहीं, वे उन्हें दूसरी ही चीजों में उलझाये रखते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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