छो (Text replacement - "तत्व" to "तत्त्व") |
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
<poem style="text-align:center;">;‘मन एवं मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।’<ref>अमृत-बिन्दु उप. 2</ref> | <poem style="text-align:center;">;‘मन एवं मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।’<ref>अमृत-बिन्दु उप. 2</ref> | ||
;चेतः खल्वस्य बन्धाय मुक्तये चात्मनो मतम्।<ref>3.25.15</ref></poem> | ;चेतः खल्वस्य बन्धाय मुक्तये चात्मनो मतम्।<ref>3.25.15</ref></poem> | ||
− | मन ही बन्धन और मोक्ष दोनों का कारण है। कैसे? ‘गुणेषु सक्तं बन्धाय’ हमारा मन ही जब प्रकृति के पदार्थों में आसक्त होता है, तो वही बन्धन का कारण बन जाता है। ‘रतं वा पुंसि मुक्तये’ और जब मन भगवान में रमता है , तो वही मुक्ति का कारण भी बन जाता है बस इतनी बात है यही अध्यात्म योग है ओर दूसरा कुछ नहीं अभी हमारा मन विषयों में, भौतिक पदार्थों में आसक्त हो गया है। उसको वहाँ से हटाकर, आत्म स्वरूप में स्थिर कर देने का जो अभ्यास है, उसी को अध्यात्मयोग कहते हैं। अहंता-ममता को छोड़ना है, धीरे-धीरे विषयासक्ति को | + | मन ही बन्धन और [[मोक्ष]] दोनों का कारण है। कैसे? ‘गुणेषु सक्तं बन्धाय’ हमारा मन ही जब प्रकृति के पदार्थों में आसक्त होता है, तो वही बन्धन का कारण बन जाता है। ‘रतं वा पुंसि मुक्तये’ और जब मन भगवान में रमता है , तो वही मुक्ति का कारण भी बन जाता है बस इतनी बात है यही अध्यात्म योग है ओर दूसरा कुछ नहीं अभी हमारा मन विषयों में, भौतिक पदार्थों में आसक्त हो गया है। उसको वहाँ से हटाकर, आत्म स्वरूप में स्थिर कर देने का जो अभ्यास है, उसी को अध्यात्मयोग कहते हैं। अहंता-ममता को छोड़ना है, धीरे-धीरे विषयासक्ति को छोड़ना है। |
यह कैसे हो? यहाँ पर उसी का उत्तर बताया गया है कि सत्संग ही उसके लिए सर्वश्रेष्ठ साधन है। | यह कैसे हो? यहाँ पर उसी का उत्तर बताया गया है कि सत्संग ही उसके लिए सर्वश्रेष्ठ साधन है। | ||
<poem style="text-align:center;">;सत्संगत्वे निस्संगत्वं निस्संगत्वे निर्मोहत्वम्। | <poem style="text-align:center;">;सत्संगत्वे निस्संगत्वं निस्संगत्वे निर्मोहत्वम्। | ||
;निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं निष्चलतत्त्वे जीवन्मुक्ति।।<ref>भजगोविन्दम 9</ref></poem> | ;निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं निष्चलतत्त्वे जीवन्मुक्ति।।<ref>भजगोविन्दम 9</ref></poem> | ||
− | सत्संग करेंगे तो धीरे-धीरे विषयों का संग छूट जायेगा। मन शुद्ध होगा तब विवेक प्रकट हो जायेगा। जब विवेक प्रकट हो जायेगा तो बन्धन भी कट जायेगा। क्योंकि अविवेक से ही सारा-का-सारा बन्धन मालूम पड़ता रहता है। वैसे, जो भी संग है वह बन्धन में डालने वाला है, लेकिन असंग पुरुष के साथ जो संग होता है, वह मोक्ष देने वाला होता है। | + | सत्संग करेंगे तो धीरे-धीरे विषयों का संग छूट जायेगा। मन शुद्ध होगा तब विवेक प्रकट हो जायेगा। जब विवेक प्रकट हो जायेगा तो बन्धन भी कट जायेगा। क्योंकि अविवेक से ही सारा-का-सारा बन्धन मालूम पड़ता रहता है। वैसे, जो भी संग है वह बन्धन में डालने वाला है, लेकिन असंग पुरुष के साथ जो संग होता है, वह [[मोक्ष]] देने वाला होता है। |
− | <poem style="text-align:center;">;संगस्तेष्वथ ते | + | <poem style="text-align:center;">;संगस्तेष्वथ ते प्रार्थ्य संगदोषहरा हि ते ।।<ref>3.25.24</ref></poem> |
+ | |||
| style="vertical-align:bottom;"| | | style="vertical-align:bottom;"| | ||
[[चित्र:Next.png|right|link=श्रीमद्भागवत प्रवचन -तेजोमयानन्द पृ. 161]] | [[चित्र:Next.png|right|link=श्रीमद्भागवत प्रवचन -तेजोमयानन्द पृ. 161]] |
13:52, 18 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
8.कपिल भगवान से माता देवहूति का ज्ञानार्जन
मन ही बन्धन और मोक्ष दोनों का कारण है। कैसे? ‘गुणेषु सक्तं बन्धाय’ हमारा मन ही जब प्रकृति के पदार्थों में आसक्त होता है, तो वही बन्धन का कारण बन जाता है। ‘रतं वा पुंसि मुक्तये’ और जब मन भगवान में रमता है , तो वही मुक्ति का कारण भी बन जाता है बस इतनी बात है यही अध्यात्म योग है ओर दूसरा कुछ नहीं अभी हमारा मन विषयों में, भौतिक पदार्थों में आसक्त हो गया है। उसको वहाँ से हटाकर, आत्म स्वरूप में स्थिर कर देने का जो अभ्यास है, उसी को अध्यात्मयोग कहते हैं। अहंता-ममता को छोड़ना है, धीरे-धीरे विषयासक्ति को छोड़ना है। यह कैसे हो? यहाँ पर उसी का उत्तर बताया गया है कि सत्संग ही उसके लिए सर्वश्रेष्ठ साधन है।
सत्संग करेंगे तो धीरे-धीरे विषयों का संग छूट जायेगा। मन शुद्ध होगा तब विवेक प्रकट हो जायेगा। जब विवेक प्रकट हो जायेगा तो बन्धन भी कट जायेगा। क्योंकि अविवेक से ही सारा-का-सारा बन्धन मालूम पड़ता रहता है। वैसे, जो भी संग है वह बन्धन में डालने वाला है, लेकिन असंग पुरुष के साथ जो संग होता है, वह मोक्ष देने वाला होता है।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज