विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
9.भगवान शंकर का मोहित होना
शुकदेव जी कहते हैं कि वहाँ से स्वधाम लौटने पर ऋषियों की सभा में ही भगवान शंकर सती जी से कहते हैं-
देवी, अजन्मा परमात्मा की माया कितनी शक्तिशाली है वह तो तुमने भी देख ली। इसके वश में आकर मेरे जैसा व्यक्ति भी जब मोहित हो जाता है तब दूसरे लोगों की, अन्य जीवों की बात ही क्या करें? वे सब तो वैसे भी परतंत्र हैं। अब देखो, ऐसे जो प्रसंग होते हैं वे कभी-कभी भ्रामक सिद्ध होते हैं। क्योंकि यदि किसी ने इसका सच्चा भावार्थ नहीं समझा तो वह उल्टा ही अर्थ समझ बैठता है और मोहित हो जाता है। फिर वह क्या कहता है पता है? अरे, भगवान शिव भी मोहित हो गए थे तो हमारी क्या बात है। वे शिव थे, हम तो जीव हैं। कहने का भाव यही है कि ऐसे प्रसंगों का सही अर्थ-तात्पर्यार्थ समझना विशेष रूप से आवश्यक है। जिस माया से ऐसे सर्वसमर्थ शिव भगवान भी मोहित हो जाते हैं, उससे हम जैसों को कितना सावधान, कितना सतर्क, कितना जागरूक रहने की जरूरत है, इस बात को समझ लेना चाहिए और अपने मन पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए। इन्हीं सब बातों को दर्शाने के लिए यहाँ यह प्रसंग बताया गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 8.12.43
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |