विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
9.भगवान शंकर का मोहित होना
कामी पुरुष ही उसका आदर किया करते हैं। वह उपासना के लिए नहीं होता। फिर उन्होंने कि आप मेरे उस मोहिनी रूप को देखना ही चाहते हो तो देख लो। ऐसा कहकर-
देखते-देखते विष्णु भगवान अन्तर्धान हो गए। क्षण भर में वहाँ बड़ा भारी उपवन आ गया, बाग-बगीचे, उद्यान आदि सब आ गए। उसका ज्यादा क्या वर्णन करें? फिर एक सुंदर नवयुवती प्रकट हुई। और वह भी कैसी? हाथ में गेंद लेकर, वह गेंद से खेलते-खेलते आ रही थी। भगवान शिवजी ने उस रूप को देखा, तो वे भान भूल गए। उनके साथ सती जी थीं। उनको भी भूल गए। और उस युवती के पीछे-पीछे जाने लगे। गेंद उठाने के लिए वह भागने लगी तो ये भी उसके पीछे–पीछे भागने लगे। उस लीला का ज्यादा वर्णन करना ठीक नहीं है। वे ऐसे मोहित हो गए कि उन्हें अपने ऊपर संयम नहीं रहा। उनका वीर्य स्खलित हो गया। वहाँ उपस्थित सभी लोग आश्चर्य में पड़ गए कि यह क्या हो रहा है? ये तो विरक्त शिरोमणि हैं, इनकी यह दशा कैसे हो गई? नारायण भगवान ने एकदम से अपनी माया को हटा लिया। माया हट गई तब क्या हुआ?
माया के हटते ही शिव जी को स्थिति का भान हुआ। वे समझ गये कि भगवान की माया ने उन पर भी अपना प्रभाव डाल ही दिया। मानो कि वे कह रहे हों ‘भगवान आपकी माया बड़ी प्रबल है। मैं प्रसन्न हो गया। आपका यह रूप भी मैंने देख लिया।’ ततक्षण स्वयं को उस स्थिति से अलग करके शिवजी अपने स्वरूप में स्थिति हो गए और भगवान की इस महिमा को देखकर उन्हें न कोई आश्चर्य हुआ न ही ग्लानि हुई, वरन् वे तो अपने सहज स्वरूप में मग्न हो गए। देखो, यह कथा कुछ विचित्र है। यद्यपि यहाँ पर वर्णन किया गया है तथापि इसका तात्पर्य विचारपूर्वक समझने की बड़ी आवश्यकता हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज