विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
2.विराट का ध्यान
तुलसी रामायण में मंदोदरी ने रावण से कहा - रामजी को आप एक साधारण पुरुष मत समझिये। ‘पद पाताल सीस अजधामा’[1]- पाताल उनके चरण स्थानीय है तो ब्रह्मलोक शिर स्थानीय। वह वर्णन इन्हीं श्लोकों पर आधारित है।
यहाँ संक्षेप मे एक कल्पना करा देते हैं। कहते हैं- भगवान के पैर से लेकर कटि भाग तक सप्त अधो लोक हैं। कटिभाग में भूलोक है, नाभि रूप आकाश है, हृदय स्वर्गलोक है, इसी क्रम में ऊपर सिर तक सप्त उर्द्धव लोक हैं। इस प्रकार विराट पुरुष में चौदह लोक हैं। फिर दाँत है, हाथ हैं। नाड़ियाँ, रोम हैं। उसका भी वर्णन किया गया है। पाताल भगवान का पादमूल है, तलवा है। एड़ियाँ और पंजे रसातल है। महातल कहाँ है? टखना यानी (Anklet) जहाँ पर घुंघरू बाँधते हैं, वह महातल है। घुटने के नीचे का भाग तलातल है। भगवान के घुटनों में सुतल लोक है। जाँघें अतल-वितल लोक हैं। उनका कटिभाग (पेडू) भूलोक है यानि महीतल है। नाभि आकाश है। उनकी छाती स्वर्गलोक है और ग्रीवा महर्लोक है, मुख जनलोक है, कपाल तपोलोक है। और शीर्ष ही ब्रह्मलोक है। भगवान का सिर कहाँ है? ढूँढते रहो। तो यह भगवान का विराट रूप है। इसके आगे और भी वर्णन आता है। इन्द्र आदि देवता इनकी भुजाएँ हैं। पंचतत्त्व और उनके अधिष्ठाता देवता इन्द्रिया हैं। दाँत यमराज हैं। हास्य भगवान की माया है। भगवान की हँसी ध्यान देने योग्य है। भगवान की हँसी यानी माया दो प्रकार की होती है। एक तो स्वजनमोहिनी-जो भक्तों को मोहित करती है। और दूसरी विमुखजनमोहिनी-जो अभक्तों को मोहित करती है। भगवान के जो भक्त-जन हैं। उन्हें भी भगवान हँसकर मोहित करते करते हैं। इनता ही नहीं, भगवान हँसते हैं यतो कभी मोहित भी करते हैं, और कभी मोह को दूर भी कर देते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज