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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
13.कलि के पाँच निवास-स्थान
सुन- आर्थात कसाईखाना। यह जो कलि का चौथा स्थान है यह रजोगुणी स्थान है। रजोगुण विक्षेपकारी होता है। दया नाम की चीज तो वहाँ हो नहीं सकती। बस क्रूरता होती है, हिंसा होती है। अतः सून या कसाईखाने का तात्पर्य है हिंसा। सुवर्ण- और जो पाँचवाँ स्थान बताया गया- सोना या धन, उसका तात्पर्य है वैर, लालच (Greed)। जहाँ धन हो, लालच हो वहाँ शत्रु भाव हुए बिना नहीं रहता, वहाँ वैर हो ही जाता है। इस प्रकार ये सभी स्थान झगड़े की वजह, उसका कारण बनते ही हैं। इसलिए इनमें कलि का निवास स्वाभाविक है। जो लोग अपना कल्याण चाहते हैं, उन्हें इनसे बचकर रहना चाहिए, इनके वश में नहीं होना चाहिए। यूँ तो यह सबको ही ध्यान में लाने की बात है, तथापि जो लोग समाज का या देश का नेतृत्व करने वाले हैं, उन्हें तो विशेषरूप से इसे ध्यान में रखना चाहिए। इन्हें छोड़ देना चाहिए। जो इन पाँचों को छोड़ देते हैं, इन के वश में नहीं आते, उन्हें कलि का स्पर्श नहीं हो सकता। तो राजा परीक्षित ने कलियुग को छोड़ दिया, इसलिए कि यद्यपि कलियुग में अनेक दोष हैं तथापि इसमे एक ऐसा गुण है जो बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है। इसमें भगवान का नाम लेने मात्र से ही मुक्ति हो जाती है। इस कलि निग्रह के प्रसंग के बाद राजा परीक्षित ने कलि से प्रताड़ित बैल यानी ‘धर्म’ के टूटे हुए तीनों पैर तप, शौच तथा दया, जोड़ दिए और पृथ्वी माता गाय को भी आश्वस्त किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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