विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
30.भिक्षुगीत
नमः, नमः करते हुए भगवान को नमस्कार करने से, उनके सामने झुकने से, यह मन समाप्त हो जाता है। नमस्कार से, नमन से मन नम हो जाता है। यही उपाय है मन को समाप्त करने का। तो वह ब्राह्मण आत्म दृष्टि से सबको देखने लगा। अन्य लोग उसे देह दृष्टि से देखते थे। वह भली प्रकार से जानता था कि मैं देह नहीं हूँ। इसलिए, जब दुष्ट लोग उस पर कुछ फेंकते थे, तो वह यही कहता कि जहाँ कूड़ादान होता है, वहाँ कूड़ा ही तो फेंकते हैं। यह शरीर भी तो कचरे की ही पेटी है। लेाग इस पर कचरा डाल रहे हैं तो क्या बिगड़ गया? वह तो बड़ी अच्छी बात है कि भगवान ने ऊपर से इस शरीर को बहुत संवार कर भेजा है, अन्यथा (अंदर से देखने पर) हमें स्वयं घृणा होने लग जाती। ऐसा विवेक कर उस ब्राह्मण ने जाना कि मुझे कोई दुःख नहीं है।
बोले, मेरे लिए तो पूर्व-पूर्व के आचार्यों ने यह मार्ग बता दिया है। देह के साथ तादात्मय हटा दो, यह देह तुम हो ही नहीं। फिर कौन तुम्हें दुःख दे सकता है? कोई कहे कि तुम मोटे या दुबले हो, तो मुझे दुःख क्यों हो? जब मैं शरीर हूँ ही नहीं, तो उसके मोटा या दुबला होने से मुझे क्या अन्तर पड़ता है? यह भिक्षुगीत बड़ा सुन्दर है, इसे सबको गाना चाहिये। वह ब्राह्मण इस प्रकार विरक्त होकर घूमने लगा।
जो कोई भी इस भिक्षुगीत को भली प्रकार समझ लेता है, वह निर्द्वन्द्व हो जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |