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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
10.पंचम प्रश्न - नारायण का स्वरूप
राजा निमि ने कहा, “आप ब्रह्मज्ञानियों में श्रेष्ठ हैं। कृपा करके मुझे बताइये कि जिनको नारायण कहते हैं, परमात्मा कहते हैं, ब्रह्म भी कहते हैं, उनका स्वरूप क्या है? लोक में उनके जो भिन्न-भिन्न रूप बताए जाते हैं क्या वे ही सब उनके वास्तविक स्वरूप हैं?” देखो, इस संदेह का सबसे अच्छा उत्तर एक ही श्लोक में पहले ही बताया गया है। जब नारायण भगवान ने ध्रुव जी के कपोल को शंख से स्पर्श किया था, तो ध्रुव जी ने उनकी स्तुति में कहा था-
जो भगवान मेरे हृदय में प्रवेश करके मेरी वाणी को, प्राणों को, ज्ञानेन्द्रियों को तथा अन्तःकरण को चेतना प्रदान करते हैं, वे सतचैतन्य स्वरूप हैं। परमात्मा का, नारायण का वास्तविक स्वरूप यही है। यद्यपि भगवान नारायण का रूप चतुर्भुज आदि उपाधियों सहित भी बताया जाता है, तथापि उनका वास्तविक स्वरूप तो यही है। राजा निमि के पंचम प्रश्न का उत्तर पिप्पलायन योगी ने दिया है। पिप्पलायन जी कहते हैं,“जिन्हें ‘नारायण’ कहा जाता है वे ही इस व्यापक विश्व के, सृष्टि के ‘स्थित्युद्रवप्रलयहेतुरहेतुरस्य’ उद्भव, स्थिति व प्रलय के हेतु हैं, कारण हैं अर्थात अधिष्ठान रूप हैं। समस्त के कारण होते हुए, वे स्वयं अकारण हैं, उनका कोई कारण या हेतु नहीं है क्योंकि वे तो स्वतः सिद्ध हैं।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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