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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
9.चतुर्थ प्रश्न - माया तरण का उपाय
अपना सभी कुछ भगवान को अर्पित करते रहने पर एक दिन लगने लगता है कि सब कुछ भगवान का ही है। (हम उन्हें क्या अर्पित कर सकते हैं?) हमने जबरदस्ती उसमें ‘मम’ भाव कर लिया है। तात्पर्य यही है कि अपना सब कुछ भगवान को अर्पित करते रहने से, ऐसा भाव करते रहने से, धीरे-धीरे मन में भक्ति आ जाती है। भक्ति के समक्ष माया टिक नहीं पाती। अतः माया को पार करने का उपाय है भगवद्भक्ति। अब देखो, यह भगवद्भक्ति कैसे प्राप्त हो? ज्ञान कैसे हो? संयम पूर्वक, श्रद्धापूर्वक, गुरु की सेवा करते रहने से ज्ञान हो जाता है। अन्ततः उसकी परिणति भक्ति में होती है। और तब-
जब उसे भक्ति रस प्राप्त हो जाता है, तो वह भक्त कभी रोने लगता है, तो कभी हँसने लगता है। कभी गाने लगता है, तो कभी नृत्य करने लगता है और कभी ‘निर्वृताः’ पूर्णतः शान्त हो जाता है। उसके मन की वृत्तियाँ पूरी तरह से शान्त हो जाती हैं।
अर्थात जो व्यक्ति नारायण परायण हो जाता है, नारायण ही मेरे जीवन के परम लक्ष्य हैं, मेरा पूरा जीवन उनके प्रति समर्पित हैं, उन्हीं में केन्द्रित है, जो ऐसा निश्चय कर लेता है, वह माया को पार कर जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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