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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
9.चतुर्थ प्रश्न - माया तरण का उपाय
कहना यही है कि भगवान के चरणो को मत छोड़ो। इसीलिए तो कहते हैं ‘जाऊँ कहाँ तजि चरण तिहारे’ आपके चरणों को छोडकर हम कहाँ जाएँ? क्योंकि जहाँ जाते हैं वहीं फँस जाते हैं, सीधी-सी बात बस यही हैं।
यहाँ राजा निमि कहते हैं कि अब कृपा करके आप यह बताइये कि जिनकी बुद्धि प्रखर न हो, अर्थात जो स्थूल बुद्धि वाले हों, वे माया को किस प्रकार पार कर सकते हैं? इसका उत्तर प्रबुद्ध नाम के चौथे योगीश्वर ने दिया है।
तब वह अद्वैत आत्मा को जान लेता है। अतः ‘प्रबुद्ध’ वह है जो माया रूपी निद्रा से जग गया हो। तो इसलिए प्रबुद्ध योगी बताते हैं। कि माया को कैसे पार करना है। देखो, स्वप्न की माया से छूटने के लिए उपाय क्या है? जाग जाना! इसके अतिरिक्त दूसरा कोई विकल्प नहीं है। जागे बिना स्वप्न दूर नहीं होता। रस्सी में यदि साँप की भ्राँति हो गयी हो, तो जब तक ‘यह सर्प नहीं, रस्सी है’ ऐसा जान नहीं लेते तब तक भ्राँति मिटती नहीं। यह भ्राँति प्राणायाम आदि से नहीं मिटती। रस्सी के स्थान पर साँप देखने वाला यदि प्राणायाम करने बैठ जाए तो उसे साँप का दिखना बंद हो जाएगा परन्तु रस्सी का बोध नहीं होगा। अतः आँख खुलने पर या प्राणायाम छूटने पर वह साँप पूर्ववत् ही दिखायी देगा। वह भ्रामक साँप तब तक बना रहेगा जब तक रस्सी का ज्ञान नहीं होता।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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