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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
6.वेद व्यास जी का असंतोष
आप जरा मुझे समझाकर बताइये। शुकदेवजी ने यह ज्ञान कैसे प्राप्त किया, ऐसा प्रश्न जब पूछा गया, तब सूतजी शौनकादि ऋषियों को बताते हैं कि तब द्वापर युग की समाप्ति हो रही थी और कलियुग का प्रारम्भ होने वाला था। भगवान वेदव्यास जी ने देखा कि समाज के लोग बहुत दुःखी हो रहे हैं, उन्हें उनके कल्याण का मार्ग दिखाना चाहिये। उन्होंने चारों वेदों का संकलन किया, ब्रह्मसूत्र लिखे, उसके बाद सत्रह पूराण भी लिखे और फिर महाभारत लिखा। यही नहीं, उन्होंने अनेक शिष्यों को भी तैयार किया। पैल ऋषि को श्रग्वेद सिखाया, जैमिनि जी को सामवेद सिखाया, वैशम्पायनजी को यजुर्वेद सिखाया और सुमन्तु जी को अथर्ववेद सिखाया और सूत जी के पिता रोमहर्षण को इतिहास-पुराण सिखाये। इन सबों ने जो-जो सीखा था, उसका प्रचार करते रहे। भगवान व्यासजी केवल लेखक ही नहीं थे, वे तो प्रचारक भी थे। इतना सब करने के बाद भी, सरस्वती नहीं के किनारे बैठे भगवान वेदव्यास सोच रहे थे कि अभी मेरे मन में पूर्णता का अनुभव नहीं हो रहा है। मुझे संतुष्टि नहीं हो रही है। लगाता है कि अभी भी कोई कमी रह गयी है। इतना सब कर लेने के बाद मुझे जिस कृतकृत्यता का अनुभव होना चाहिये वह क्यों नही हो रहा है? अब मैं क्या करूँ?
मैंने धर्म कर्म, ज्ञान आदि का तो बहुत वर्णन किया। लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि मैंने भगवान की कथा का पर्याप्त वर्णन नहीं किया हो? आखिर भगवान को वही ज्यादा प्रिय है। परमहंसो को भी वही प्रिय है। देखो, उनको लगा मुझमें कुछ कमीं है। यही उनकी महानता है। अब यहाँ हमें सोचना चाहिए कि हम लोग जरा-सा कुछ पढ़ लेते हैं, तो स्वयं को कृतार्थ मान बैठते हैं। अपने आपको बहुत बड़ा मान बैठते हैं। और एक भगवान वेदव्यासजी हैं ‘नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे’ जो इतना कुछ करने के बाद भी सोचते हैं कि कोई कमी रह गई है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.4.31
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